________________
९०६
भगवतीसूचे भगवान् गौतमः श्रमणेन भगवता महावीरेणाभ्यनुज्ञातः सन् श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिकात् गुणशिलकात्-चैत्यात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्राम्य त्वरित मचपलमसंभ्रान्तो युगान्तरमलोकनया दृष्टया पुरतोरितम् ईयाँ शोधयन् शोधयन् यसैव राजगृहं नगरं तवोपागच्छति. उपागत्य राजगृहे नगरे उच्चनीच मध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षाचर्यामटति ।। मू० १२ ॥ जैसे सुख हो वैसा करो, विलम्ब मत करो । (तएणं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे) तब श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा आज्ञा पाकर वे भगवान् गौतम ( समणेस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ ) श्रमण भगवान् महावीर के पास से और गुणशिलक उद्यान से निकले, और (पडिनिक्खमित्ता) निकलकर ( अतुरियमचवलमसंभंते जुगंतर पलोयणाए दिट्ठीए पुरओरियं सोहमाणे जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागच्छइ) शारीरिक एवं मानसिक चंचलता से रहित होकर असंभ्रान्त ज्ञानपूर्वक जुआ प्रमाण सामने की भूमि का दृष्टि से शोधन करते हुए राजगृह नगर की तरफ गये। (उवागच्छित्ता ) राजगृह नगर में पहुंचकर ( रायगिहे णयरे ) वहां ( उच्चनीच मज्झिमकुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियं अडइ ) ऊँच, नीच और मध्यम घरों में शास्त्रोक्तविधि के अनुसार भिक्षा के लिये घूमने लगे ॥ १२ ॥ सुम परे तेम ४२, विen न ४२१. (तएण भगव गोयमे समणेण भगवयो महावीरेण अब्भणुण्णाए समाणे) त्यारे श्रम भगवान महावीरनी माज्ञा सन गौतम स्वामी (समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ) श्रम भगवान महावीरनी पासेथी, शुशुशिल थैत्य भांथी मा२ नीxण्या. (पडिनिक्खमित्ता) १७.२ नीजीन ( अतुरियमचवलम संभंते जुगतरपलोयणाए दिट्ठीए पुरओरिय सोहमाणे जेणेव रायगिहे णयरे तेणेव उवागच्छइ ) शारी२४ मने मानसि यताथी २हित थन मस प्रान्त જ્ઞાનપૂર્વક ધૂંસરી પ્રમાણ સામેની ભૂમિનું દૃષ્ટિથી શોધન કરતાં કરતાં રાજ. गुड ना२ त२३ यासn atया ( उवागच्छित्ता ) २०४७ नगरमा ने ( रायगिहे णयरे उच्चनीचमज्झिमकुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरिय अडइ ) ઊંચ, નીચ, અને મધ્યમ ઘરમાં શાસ્ત્રોક્ત વિધિ અનુસાર ગોચરી પ્રાપ્ત કરવા भाट ३२ सय ॥ १२ ॥
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨