SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 919
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० ० २ उ०५ सू०१२ पाश्वपित्यीयविहारोत्तरनिरूपणम् ९०५ वान् महावीरस्तौवोपागच्छति । उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं बन्दते नमस्यति वन्दित्वा-नमस्थित्वा एवमवादीत् इच्छामि खलु भदंत ! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् षष्ठक्षपणपारणके राजगृहे नगरे उच्चनीचमध्यमानि कुलानि गृहसमुदानस्य भिक्षाचर्यायाम् अटितुम् यथासुखं देवानुपिय ! मा प्रतिवन्धं कुरु । ततः खलु लेहिता भायणाई पमजइ ) प्रतिलेखना करके फिर वे पात्रों की प्रमार्जना की। ( पमजित्ता ) प्रमार्जना करके ( भायणाइं) पात्रों को फिर वे ( उग्गहेइ ) लिये ( उग्गहित्ता ) पात्रों को लेकर ( जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ इ ) जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां पर आये (उवागच्छित्ता) वहां आकर वे (समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ) श्रमण भगवान महावीर की स्तुति की उन्हें अपने पांच अंगों को झुकाकर नमस्कार किया। (वंदित्ता नमंसित्ता ) वंदना नमस्कार करके फिर वे उनसे इस प्रकार कहा- ( इच्छामिण भंते । तुम्भेहिं अभणुण्णाए समाणे छट्टक्खमणपारणगंसि रायगिहे नयरे उच्चनीचमज्झिमाइं कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए) हे भदंत ! में आपसे आज्ञा प्राप्त करके आज छ? के पारणा के दिन राजगृह नगर में उच्च, निच एवं मध्यम कुलों में भिक्षाचर्या की विधि के अनुसार भिक्षालेने के निमित्त जाना चाहता हूं, उस पर भगवान ने कहा-( अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ) हे देवानुप्रिय! तुम्हें लेहित्ता ) प्रतिमना अशन ( भायणाई वत्थाइ पडिलेहेइ ) मानानी भने वसोनी प्रतिमना ४२१. ( पडिलेहित्ता भयणाई पमज्जइ ) प्रतिमन शन तेभाणे त पात्रोनी अमान। ४२. ( पमज्जित्ता) प्रभा ना ४शन (भायणाई उग्गहेइ) पात्रीने हाथमा सीधा. ( उगाहित्ता ) पात्राने सधने (जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छइ ) यां श्रम मन मडावी२ विमान उता त्या माव्या. ( उवागच्छित्सा) त्या भावाने (समण भगव महावीर वंदर नमसइ) श्रम भगवान महावीरने पशु। ४२१, पांये मग नभावाने नमः २४१२ ४ा. (वदित्ता नमंसित्ता) ४ नमः४५२ रीने ( एवं वयासी) तेभाणे तेभने २L प्रमाणे ह्यु-(इच्छामि ण भंते तुब्भेहि अब्भणुण्णाए छटुक्खमण पारणगंसि रायगिहे नयरे उच्चनीचमज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए) महन्त ! सापनी मनुज्ञा भणे तो मारे ७४ना पायाने हिवसे હું રાજગૃહ નગરના ઉચ્ચ, નીચ અને મધ્યમ કુલેમાં ભિક્ષાચર્યાની વિધિ અનુસાર ભિક્ષા લેવાને જવા માગું છું. ત્યારે ભગવાને આ પ્રમાણે જવાબ माय ( अहासुह देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह) वानुप्रिय ! मापने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy