________________
भगवतीसूत्रे इन्द्रभूति मानमारो याक्त् संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्यः षष्ठं षष्ठेनानिक्षिप्तेन तपः कर्मणा संयमेन तपसा आत्मानं भावयन यावद्विहरति । ततः खलु स भगवान् गौतम, षष्ठक्षपणकपारण के प्रथमायां पौरुष्या स्वाध्यायं करोति द्वितीयायां पौरुष्यां ध्यानं ध्यायति तृतीयायां-पौरुष्याम् अत्वरितम् अचपलम् असंभ्रान्तो मुखपत्रिका प्रतिलेखयति प्रतिलेख्य भाननानि वस्त्राणि प्रतिलिखति प्रतिलेख्य भाजनानि प्रमार्जयति. प्रमाज्य भाजनानि उद्गृह्णाति उद्गृह्य यौव श्रमणो भग अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे जाव संखित्त विउलतेयलेस्से छठे छट्टेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरह ) श्रमण भगवान महावीर के प्रधान अंतेवासी इन्द्रभूती नाम के गणधर थे ये यावत् संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्यावाले-विपुल तेजलेश्या को अपने में रोकने वाले थे। निरन्तर छट्ठ छ? की तपस्या से तथा संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए रहते थे। (तएणं से भगवं गोयमे छट्टक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ ) वे भगवान् इन्द्रभूति गणधर जय छ? के पारण के दिन प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय कर (बीयाए पोरिसीए झाणं झियाइ ) द्वितीय पौरुषी में ध्यान-सूत्र अर्थ को चिन्तन कर (तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ ) तृतीय पौरुषी में शारीरिक एवं मानसिक चपलता से रहित होकर असंभ्रान्त ज्ञानपूर्वक सदोरक मुहपत्ति की प्रतिलेखना की। (पडिलेहित्ता) प्रतिलेखना करके ( भायणोइं वत्थाई पहिलेहेइ) फिर वे भाजनों की एवं वस्त्रों की प्रतिलेखना की (पडि
संखित्त विउलतेयलेस्से छ, छट्टणं अणिक्खित्तणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ) श्रम लगवान महावीरना भुज्य शिष्य छन्द्रभूति નામના ગણધર હતા. તેઓ સંક્ષિપ્ત વિપુલ તેજલેશ્યા વાળા હતા–એટલે કે વિપુલ તેજલેશ્યાને પોતાની અંદર સંકુચિત કરનારા હતા. તેઓ નિરંતર છઠ્ઠને પારણે છઠ્ઠની તપસ્યાથી તથા સંયમ અને તપથી તેમના આત્માને ભાવિત ४२ता २उता उता. (तएणं से भगव गोयमे छटुक्खमणे पारणगंसि पढमाए पोरि सीए सज्झाय करेइ) ते मावानन्द्रभूति धरे ( गौतम स्वाभी) छन। पारने हस पडसा पारे स्वाध्याय ४शन (बीयाए पोरिसीए झाणं झियाई) भी० ५डारे ध्यान-सूत्र अर्थनु चिन्तन ४२रीन ( तइयाए पोरिसीए अतुरियमच. वलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ) श्रीरे पसारे २४ मने मानसि य५५. ताथी २हित थ ने मसान्त ज्ञानपू१४ भुभवसिधानी प्रतिमना ४ ( पहि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨