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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू० ११ धर्मोपदेशनानिरूपणम् ९०१ वतः 'वंदइ नमसइ ' वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा 'पसिणाई पुच्छंति' प्रश्नान् पृच्छन्ति 'पसिणाई पुच्छित्ता' प्रश्नान्-पृष्ठा 'अट्ठाई उवादियंति ' अर्थान् उपाददति 'उवादित्ता उठाए उट्टेति' उपादाय उत्थया उत्ति. ष्ठन्ति 'उद्वित्ता थेरे भगवंते तिक्खुत्तो वंदंति नमसंति ' उत्थाय स्थविरान् मगवतः त्रिकृत्वो-वन्दन्ते नमस्यन्ति 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा 'थेराणं भगवंताणं अंतियाओ' स्थविराणां भगवतामन्तिकात् समीपात् 'पुष्फवइयाओ चेइयाओ पडिनिकाखमंति' पुष्पवतिकात् चैत्यात् प्रतिनिष्क्रामन्ति 'पडिनिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'जामेवदिसि पाउन्भूया' यामेव दिशमाश्रित्यप्रादुर्भूताः नमंसइ) उन्हों ने उन स्थविर भगवन्तों को वन्दना की नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके (पसिणाई पुच्छंति ) फिर उन्होंने उनसे और भी जो प्रश्न पूछने थे वे पूछे (पसिणाइं पुच्छित्ता) प्रश्नों को पूछकर (अट्ठाइं उवादियंति ) उनका उनसे समुचित यथार्थ उत्तर प्राप्त किया । (उवादित्ता) यथार्थ समुचित उत्तर प्राप्त कर ( उठा. ए उडेति) अपनी ही उत्थानशक्ति द्वारा वहाँ से उठे (उद्वित्ता थेरे भगवंत्ते तिक्खुत्तो वंदति नमसंति) उठकर स्थविर भगवन्तों को उन्होंने तीन वार वंदना की और नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्सा) वंदना नमस्कार करके (थेराणं भगवन्ताणं अंतियाओ) स्थविर भगवन्तों के पास से और (पुप्फवइयाओ चेइयाओ) पुष्पवतिक चैत्य से वे सब के सब (पडिनिक्खमंति) बाहर निकले (पडिनिक्खमित्ता) बाहर निकल कर (जामेव दिसि पाउन्भूया) जिस दिशा से प्रकट हुए थे अर्थात्-जिस भने सतोष पाभ्या. (थेरे भगवते वंदइ नमसइ) तेमणे ते स्थविर लसपताने || ४२री, नमः४।२ ४ा. (वंदित्ता नमंसित्ता) ! नभ२४॥२ ४शन (पसिणाई पुच्छति) भी प्रश्नो १५] पूछ्या. (पसिणाई पुच्छित्ता) प्रश्री पूछीने (अट्ठाई उवादियंति) ते प्रश्नोना समुथित उत्तरे। तेमनी पासेथीnel सीधा. ( उवादित्ता) यथार्थ समुथित उत्तरे। भगवान ( उदाए 3 ति) तमनी उत्थान शतिथी ४या, ( उछित्ता थेरे भगवंते तिक्खुत्तो वंदंति नमसंति ) महीने तेभो २थविर मातीने १४॥ ॐरी, नम२४.२ ४ा. (वंदित्ता नम सित्ता) ! नम२४.२ ४ीने (थेराण भगवंताण अंतियाओ) स्थविर लगानी पासेथी, मन (पुप्फवइयाओ चेइयाओ) पवति यत्यमाथी ते अधा (पडिनिक्खमंति ) पा२ नीच्या. (पडिनिक्खमित्ता) त्यांथा महा२ नीजीन (जामेव दिसि पाउब्भूया) के हिशामेथी माया त ( तामेव दिसि पडिगया) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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