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भगवती सूत्रे
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आय माववत्तन्वयाए ' नो चैव खलु आत्मवक्तव्यतया नैवात्मभाववक्तव्यतया अयमर्थः, आत्मभावः स्वाभिप्रायः न खलु वस्तुतन्त्वम्, वक्तव्यः वाच्यः अभिमानात् येषां ते आत्मभाववक्तव्याः तेषामात्मभाववक्तव्यानां भाव आत्मभाववक्तयता अभिमानिता, तया आत्मभाववक्तव्यतया अभिमानितया नवयमेवं प्रतिपादयामः अपि तु परमार्थएवायमेवं विधोऽर्थः तीर्थकरोदितत्वात् ' तए णं ते समणोवासया' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः ' थेरेहिं भगवंतेहिं ' स्थविरमंग'माई एयाख्वा वागरणाई' इमानि एतद्रूपाणि व्याकरणानि ' वागरिया समाणा ' व्याकृताः सन्तः ' हट्टतुट्ठा ' हृष्टतुष्टा: ' थेरे भगवंते ' स्थविरान् भगररूप अर्थ है वह सत्य है । यह इस प्रकार का उत्तर ( नो चेव णं आयभाववत्तन्वयाए ) हमने अभिमान के वशवर्ती होकर तुम्हें नहीं दिया है किन्तु तीर्थंकर प्रभु द्वारा प्रतिपादित होने के कारण यह वास्त बिक रूप में ही तुम्हें दिया है अतःयह पारमार्थिक ही है । अत्मभाव वक्तव्यता का तात्पर्य यह है कि जिस उत्तर में अभिमान के वश होकर जीवों द्वारा आत्मभाव - स्वाभिप्राय स्वकल्पित अभिप्राय - कहा जाता है वह, सो यह उत्तर ऐसा नहीं है, यह तो तीर्थङ्कर प्रभुका आदेश है । उसी के अनुसार यह कहा गया है।
( तरणं ते समणोवासया ) इस के बाद वे श्रमणोपासक ( थेरेहिं भगवंतेहि ) उन स्थविर भगवंतों द्वारा (इमाई एयारूवाई वागरणाई ) इस प्रकार के इन उत्तरों से ( बागरिया ) प्रतिबोधित किये जाने पर ( हट्ठ तुट्ठा) बहुत अधिक हर्षित हुए और संतुष्ट हुए (थेरे भगवंते बंदइ
ते सत्य छे. या प्रहारनो उत्तर ( नो चेव णं आयभाववत्तव्वयाए ) अभे અભિમાનને અધીન થઇને આપ્યા નથી, પણ તીર્થંકર પ્રભુદ્વારા પ્રતિપાદિત होवाथी ते उत्तर वास्तवि छे, मने तेथी ते पारमार्थिङ छे. ( आत्मभाववक्तव्यता ) मा पहनुं तात्पर्य नीचे प्रमाणे छे - अभिमानने वश थाने ला દ્વારા કેટલીક વખત સ્વાભિપ્રાય સ્વકલ્પિત અભિપ્રાય આપવામાં આવે છે. તેવા અભિપ્રાયને આત્મભાવ વક્તવ્યતા કહે છે. તા અમે આપેલા ઉત્તર એ પ્રકારના નથી. તેતા તીર્થંકરા દ્વારા પ્રતિપાદિત છે અમારી કલ્પના શક્તિથી તે ઉત્તર અપાચે નથી
તેથી તે યથાથ છે
(थेरेहिं भगव तेहिं )
( तएण ते समणोवासया ) त्यारे श्रमणोपासी ते स्थविर लगवतो द्वारा ( इमाई एयारूवाई वागरणई' ) ते अारना ते उत्तरो सांभणीने ( वागरिया ) प्रतिमोषित थया ( हट्ट तुड्डा ) तेथे अतिशय दुर्ष
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨