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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श०२ उ०५ सू०१० दर्शनोत्सुकजनस्वरूपनिरूपणम् ८८१ विहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति" पञ्चविधेन पञ्चभकारेण अभिगमेन, विनयपूर्वक मुर्वादिसमीपे विधिपूर्वकं गमनम्-अभिगमस्तेन अभिगच्छन्ति सम्मुखं गच्छन्तीति पञ्चप्रकारकमभिगममेव दर्शयति-" तं जहा" इत्यादि । “तं जहा" तद् यथा" सचित्ताणं दवाणं विउसरणयाए " सचित्तानां द्रव्याणां व्यवसर्जनतया सचि तानां पुष्पताम्बूलादीनां व्यवसर्जनतया परित्यागेन १। “अचित्ताणं दवाणं अविउसरणयाए" अचित्तानां द्रव्याणां वस्त्रालङ्कारादीनाम् । अव्यवसर्जनतया= अपरित्यागेन २ । " एगसाडि एणं " एक्शाटिकेन स्यूतवर्जिताखण्डितबलेण " उत्तरासंगकरणेणं " उत्तरासंगकरणेन भाषायतनार्थमुत्तरीयवस्त्रस्य मुखोपरिस्थापनेन ३ । " चवखुप्फासे” चक्षुः स्पर्शे स्थविराणां दर्शने सति "अंजलिप्पग्गहेणं " अञ्जलिप्रग्रहेण, अञ्जलिबन्धनेन ४ । तथा "मणसो एगत्तीकरणेणं" अभिगच्छंति) वे स्थविर भगवंतों के पास पांच प्रकार के अभिगम से गये । विनयपूर्वक गुरु आदि के समीप जाने की विधि जैसी शास्त्र में कही गई है उसके अनुसार उनके पास जाना इसका नाम अभिगम है। यह पांच प्रकार का होता है, जैसे-( सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए) सचित्तद्रव्यों का परित्याग करना, अर्थात-साधुओं के दर्शन करने के लिये जाते समय अपने पास ताम्बूल आदि रूप सचित्त वस्तुओं को नहीं रखना १, (अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए ) अचित्तवस्त्रादि को त्याग नहीं करना २, ( एगसाडिएणं उत्तरासंगकरणेणं ) भाषा की यतना के लिये अखंडित-विनासिये हुए उत्तरीय वस्त्र को मुख के ऊपर रखना ३ । ( चक्खुप्फासे अंजलिप्पग्गहेणं ) पूज्य स्थविरों के दर्शन होते ही दोनों हाथों को जोडना ।। (मणसो एगत्ती करणेणं) भक्ति ભગવતે પાસે ગયા. વિનયપૂર્વક ગુરુ આદિની પાસે જવાની જે વિધિ શાસ્ત્ર માં બતાવી છે તે વિધિ પ્રમાણે ગુરુની પાસે ગમન કરવું તેનું નામ અભિआम छे. तेना पांय प्रारी नये प्रमाणे छ-" सचित्ताण दब्वाण विउसरणयाए" (૧) સચિત્ત દ્રવ્યેને પરિત્યાગ કરવો-સાધુઓનાં દર્શન કરવા જતી વખતે पातानी पासे तम्यूa माहि वस्तु २२मपी नडी. (२) “ अचित्ताणदव्वाण अविसरणयार " अयित्त वाहिनी त्या न ४२३. (3) "एगसाडिए ण उत्तरासंगकरणेण” (3) लापानी यतनाने निमित्त शीव्या विनाने ४१५७। ४४31 ( भुमलिता) माढा ५२ २२५ (५) “ चक्खुपम्फासे अंजलिप्पग्गहेण" पून्य भविशनi शान थdi ar मन्ने । नेपा. (५) (मणसो एगत्तीकरणेण) भनने मतिमा १५ ४२. मेट? मने विषयोना भ १११ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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