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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. २ उ० ५ स०१० दर्शनोस्सुकजनस्वरूपनिरूपणम् ८७९ "पडिमुणित्ता" प्रतिश्रुत्य-स्वीकृत्य ते श्रावकाः "जेणेव सयाई सयाई गिहाई " यौव स्वकानि स्वकानि गृहाणि " तेणेव उवागच्छंति " तत्रैवोपागच्छन्ति, “ उवागच्छित्ता" उषागत्य " हाया कयलिकम्मा" स्नाताः कृतवलि कर्माणः, तत्र स्नाता=कृतस्नानाः कृतवलिफर्माणः काकाद्यर्थ कृतानभागाः "कयकोउयमंगलपायच्छित्ता " कृतकौतुकमगलमायश्चित्ताः-कृतानि = सम्पादितानि, कौतुकानि मषीतिलकादीनि, मङ्गलानि मङ्गलकारकाणि, दध्यक्षतादीनि प्रायचित्तानि = दुस्वप्नादि फलविघातार्थमवश्यकर्त्तव्यानियैस्ते तथा, " सुद्धप्पावे. साइं मंगल्लाई वत्थाई पचरपरिहिया " शुद्धप्रवेश्यानि मङ्गल्यानि वस्त्राणि प्रवरपरिहिताः, शुद्धानिक स्वच्छानि, प्रवेश्यानि-सभाप्रवेशयोग्यानि मङ्गल्यानि-मगलजनकानि-बस्त्राणि मवरपरिहिताः सम्यग्रीत्या परीधृताः-सम्बपरिधृत माङ्गलिक स्वच्छवस्त्रा इत्यर्थः " अपमहग्याभरणालंकियसरीरा" अल्पमहा_भरणालङ्कृत मण्णस्स एयमटुं पडिप्सुणेति ) स्थविरों की पर्युपासना करनेरूप बात को आपस में स्वीकार लिया ( पडिसुणित्ता ) स्वीकार कर के फिर वे श्रमणोपासक-श्रावक (जेणेव सयाइं सयाई गिहाई) जहां अपने अपने घर थे (तेणेव उवागच्छंति) वहां पर गये ( उबागच्छित्ता) जाकर (पहाया कयपलिकम्मा ) उन्हो ने पहिले स्नान किया बाद में काक आदि पक्षियों के निमित्त अन्न भादि देने रूप बलि कर्म किया, ( कयकोउयमंगलपायच्छित्ता ) मषीतिलक आदि कौतुकों को, मंगल कारक कर्मों को एवं दुःस्वप्न आदिके फल को विधात करने के निमित्त अवश्य करने योग्य प्रायश्रित्तों को किया बाद में (सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवरपरिहिया ) उन्हों ने शुद्ध स्वच्छ तथा सभा में पहिरने के योग्य मांगलिक वस्त्रों को अच्छे ढंग से पहिरा (अप्पमह (अण्णमण्णस्स एयम पडिसुणे ति) स्थविर सगवतानी पयुपासना ४२व। ४ानी पातना ५२२५२ स्वी१२ च्या. (पडिसुणिता ) वीर श२ तमे। (जेणेव सयाई सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छंति) पोत पाताने २ गया. ( उवागच्छित्ता ) ३२ ४२ " व्हाया कयबलिकम्मा " तेमणे स्नान युत्यार माह पक्षीमाने मनाहि वा३५ मलिभ यु'"कयकोज्यमंगलपा यच्छित्ता" त्या२ मा भA Hi०४१।३५ धौतु। .. म ११४१२४ या અને દુર્વાન આદિનું ફળ નષ્ટ કરવાને માટે આવશ્યક પ્રાયશ્ચિત્ત ક્ય. "सुद्धप्यावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पचरपरिहिया" त्या२ मा तभी सलामा ५२२१॥ योग्य २१२७ तथा मांगलि ४५i सारी ते पा२१ स्या. " अपमहाघाभरणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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