SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 884
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीस्त्र सन्ति तत्०-चोराहा ' इतिभाषापसिद्धस्थानम् , चत्वरं बहुमार्गसंमेलन-स्थानम्, चतुर्मुख चतुरिं स्थानम्-आगन्तुकादीनां विश्रामस्थानम्-महापथः राजमार्गः, पन्थाः, पन्थाः= रथ्यामात्रम्, तेषु सर्वेषु स्थानेषु, " जाव एगदिसाभिमुहा णिज्जायंति" यावत् एक दिशाभिमुखाः निर्यान्ति, इह यावत्करणात् "महया जणसद्देइ वा जणवूहेइ वा जणबोलेइ वा जणकलकलेइ वा जणुम्मीइवा जणुक्कलियाइ वा जणसण्णियवाएइवा बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ एवं खलु देवाणुप्पिया पासावचिज्जा थेरा भगवंतो पुब्वाणुपुचि चरमाणा गामाणुगामं दृइज्जमाणा इह मागया इह संपत्ता इह समोसढा इहेव तुंगियाए नयरीए बहिं पुप्फवइए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति तिकडु" इत्येतेषां ग्रहणम् । तत्र महान् जनशद्धः महान् अनेक जनशब्दः, एवं महान् , इति सर्वत्र यो ज्यम् । " जणबुहेइवा" जनव्यूहो लोकसमूहस्य परस्परं पृच्छा करणम् जणबोले इवा" जनानां व्यक्तो ध्वनिः । जणकलकले इवा" जनकलकलो जनानां में चत्वर-जहां अनेक मार्ग मिलते हैं, चतुर्मुख-चारद्वार वाले स्थान में, अर्थात् जहां पर आगन्तुक जन आकर विश्राम करते हैं ऐसे स्थान में, महापध-राजमार्ग में, पथ-सामान्यमार्ग में, (जाव एगदिमाभिमुहा णिज्जायंति ) यावत् एकदिशा की तरफ मुंह करके लोग चलने लगे, अर्थात्-तुंगिका नगरी के शृंगाटक आदि मार्गों में मनुष्यों की बहुत बडी भीड़ लगी हुई थी। परस्पर में बातें करते थे सो कहते हैं-(महया जणसइ) कहींपर मनुष्यों की भीड थी-उसमें परस्पर में में लोगों ने एक दूसरे से बोलते थे। कहींपर (जणवूहेइ वा ) आपस में लोगसमूह ज्यो भने भा भगता डाय त्यां, ( चतुर्मुख) या२ २ri स्थानमा मेट न्यां पथि विश्राम से छे मेव। स्थानमा, (महापथ) २००४ मार्गमा (पथ) सामान्य भाभा (जाव एगदिसाभिमुहा णिज्जायति ) यावत मे हि त२५ भु५ ४शन લેકે ચાલવા માંડ્યાં. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તુંગિકા નગરીના સંગાટક આદિ માર્ગો પર લેકેની ભારે ભીડ જામી હતી. તેઓ પરસ્પરજે વાત કરતા હતા તે सूत्र॥२ छ नीय प्रमाणे सूत्र ॥२॥ ४ छ -(महया जणस हे) यामे કેની ભારે ભીડ હતી અને તેઓ એક બીજા સાથે વાત કરતા હતા. (जणबूहेइवा) ४ ४२यामे सानो समूड मे भीतने पूछते। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy