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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० ५ सू० १० पापित्यीयस्थविरवर्णनम् ८६७ चन्दामहे नमस्यामः यावत्पर्युपास्महे एतेन अस्माकम् इहभवे परभवे वा यावत् अनुगामितायै भविष्यति इति कृत्वाऽन्योन्यस्यान्तिके एतमर्थ प्रति शृण्वन्ति प्रतिश्रुत्य यत्रैव स्वकाःस्वकाः गृहास्तत्रैवोपागच्छन्ति उपागत्य स्नाता कृतवलिकर्माणः कृतकोतुकमङ्गलप्रायश्चित्ताः शुद्ध प्रावेश्यानि माङ्गलिकानि वस्त्राणि प्रवरपरिहिता अल्पमहार्घाभरणालंकृतशरीराः स्वकेभ्यः स्वकेभ्यो पास चलें, उन्हें वन्दन करें, नमस्कार करें यावत् उनकी पर्युपासना करें। ( एयं णे इह भवे वा हियाए सुहाए खेमाए निस्सेयसाए आणुगामिय यत्ताए भविस्सइ ) यह काम अपन सषको इस भवमें और परभव में हित के लिये, सुख के लिये, क्षेम के लिये, निःश्रेयस के लिये और आनुगामिता के लिये अर्थात् परलोकमें साथ में आने के लिये होगा (इत्तिकटु अण्णमण्णस्स अन्तिए एयमढे पडिसुणेति) इस प्रकार विचार करके उन्होंने एकदसरे की बातचीत को स्वीकार कर लिया। (पडि. सुणित्ता ) स्वीकार करके (जेणेव सयाइं सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छन्ति ) फिर वे सब के सब जहां अपने २ घर थे वहां आये । ( उवागच्छिता ) वहां आकर उन्होंने (हाया) स्नान किया (कयवलिकम्मा) बलिकर्म किया अर्थात् काय आदि पक्षियों को अन्नादि दिया (कयकोउमंगलपायच्छित्ता ) कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त किया तथा इन सब कामों को करने के बाद (सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवरपरिहिया ) शुद्ध, प्रवेश्य-सभा में प्रवेश होनेके योग्यमंगलकारक वस्त्रों को अच्छि तरह से धारण किये। ( अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरा ) थोडे भार તેસ્થવિર ભગવંતે પાસે જઈએ. તેમને વંદણા નમસ્કાર કરીએ. (યાવતુ) तेभनी ५युपासना शये. एयं णे इह वा परभवे वा हियाए सुहाए खेमाए निस्सेसयाए आणुगामियत्ताए भविरसइ) ते म मा५ सौने भाट सा सप અને પરભવમાં હિતકારી, સુખકારી, ક્ષેમકારી, કલ્યાણકારી અને પરલોકના मात३५ मनशे. ( इत्तिकठु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमटुं पडिसुणेति) मा प्रमाण विया२ अरीन तेभो भीलनी वातयातने मानी दीधी. “पडिसुणिता" मे मीनी पातने मान्य ४शन “ जेणेव सयाई गिहाई तेणेव उवागच्छति" तमे। योत पाताने ३२ गया " उवागच्छित्ता " ३२ ४४ने “ हाया" तेभ स्नान थु " कयबलिकम्मा" मतिम यु-माहिने मन्नाह माया, "कयकोउयमंगलपायच्छित्ता " कौतु, भ७१ मने प्रायश्चित्त ४या से मां अमे। शन “ सुद्धप्पवेसाई मंगल्लाइवत्थाई परिहिया" सभामा ५२वा योग्य भारी वसोने घा२६ ४ा. " अपमहग्धाभरणालंकियसरीरा" या 4. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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