SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 880
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६६ भगवतीसूत्रे प्रतिरूपमवग्रहमवगृह्य खलु संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्तो विहरंति. तत्खलु महाफलं देवानुप्रियाः तथारूपाणां स्थविराणां भगवतां-नामगोत्रस्यापि श्रवणतया, किमंग पुनरभिगमन-वन्दन-नमस्यन-प्रतिपच्छन-पर्युपासनतया, यावत् ग्रहणतया तद् गच्छामः – खलु देवानुप्रियाः स्थविरान् भगवतो आकर (अहा पडिरूवं ओग्गहं ओग्गिमिहत्ताणं) यथा प्रतिरूप अवग्रह -वनपाल-से कल्पनीय वसति की आज्ञा को लेकर (संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति) संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए पुष्पवतिक उद्यान में विराजमान हैं। (तं खलु देवागुप्पिया) तो हे देवानुप्रियो ! (तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोय. स्स वि सवणयाए महाफलं ) तथारूप स्थविर भगवंतों के नाम तथा गोत्र के श्रवण से जीवों को जब महाफल प्राप्त होता है तो ( किमंग पुण अभिगमण वंदण नमसणपडिपुच्छणपज्जुवासणयाए जाव गहणयाए) तो फिर हे मित्रो ! उनके समक्ष जाने से, उनकी वन्दना करने से, उन्हें नमस्कार करने से, कुशल समाचाररूप सुखशाता पूछने से, उनकी सेवा करने से यावत् उनके उपदेश को धारण करने से आत्मा का कल्याण हो जावे तो इसमें कौनसी आश्चर्य की बात है। (तं गच्छामोणं देवाणुप्पिया! थेरे भगवन्ते वन्दामो नमंसामो जाव पज्जुवसामो) इसलिये हे देवानुप्रियो ! चलो उन स्थविर भगवंतों के विशेष प्रड ४२१॥ ) ते पुपति चैत्यमा मावाने " अहा पडिरूव ओग्ग ओग्गिण्हित्ता ण '' शाशानुसा२ वनपासनी मा! बने “संजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणा विहरइ" सयम भने तपथी पोताना मात्माने सावित ४२ता त्यां वियरे छ. “ त खलु देवाणुप्पिया" तो 3 वानुप्रिये!! " तहारूवाण थेराण भगवताण नाणगोयस्स वि सवणयाए महाफल' " સ્થવિર ભગવર્નોનાં નામ અને ગેત્રનું શ્રવણ કરવાથી પણ જીવને મહાન जनी प्राप्ति थाय छ, त “किमंग पुण अभिगमणवंदणनमंसणपडि पुच्छण पज्जुवासणयाए जाव गहणयाए ” भनी पासे थी, तेभने पन्ना કરવાથી, તેમને નમસ્કાર કરવાથી, તેમને કુશળ સમાચાર પૂછવાથી, તેમની સેવા કરવાથી અને તેમને ઉપદેશ સાંભળવાથી આત્માનું કલ્યા६५ यs alय तो तमा माश्य पाभवा रे नथी. "तगच्छामो ण देवाणुप्पिया येरे भगवंते वंदामो नमंसामो जाव पन्जुवासामो” तो 3 देवानुप्रियो ! यासी, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy