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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० ५ सू० १० पार्वापरयीयस्थविरवर्णनम् ८६५ कथाया लब्धार्थाः सन्तो हृष्टतुष्टा यावत् शब्दायन्ति शब्दायित्वा एवमूचुः, एवं खलु देवानुप्रियाः पार्यपत्यीयाः स्थविराः भगवन्तो जातिसंपन्ना यावत् यथा पर, अर्थात्-चौराहे पर, चत्वर-अनेक मार्गवाले स्थान पर, महापधराजमार्ग पर, पथ-सामान्य रास्ते पर, (जाव एगदिसाभिमुहा णिज्जायंति ) यावत्-एकदिशाभिमुख होकर निकले अर्थात् जब वे स्थविर भगवंत पुष्पवतिक उद्यान में आकर विराजमान हो गये तब उनके आगमन की बात तुंगिका नगरी में शृंगाटक आदि मार्गों पर प्रत्येक व्यक्ति के मुख से सुनने में आने लगी, तब लोग तुंगिका नगरी से जहां बे स्थविर भगवंत विराजमान थे उस और चले। (तएणं ) इस तरह जगह जगह इस चर्चा के होने के बाद (ते समणोवासया ) वे श्रमणो पासक (इमीसे कहाए लट्ठा समाणा) इस बात को सुनकर (हद्वतुठ्ठा जाव सहावेति ) बहुत ही अधिक हर्षित एवं संतुष्ट हुए। बाद में उन्हों ने एक दूसरे को बुलाया (सदावित्ता एवं क्यासी ) और बुलाकर वे इस प्रकार से आपस में बात चीत करने लगे (एव खलु देवाणुपिया पासावञ्चिज्जा) हे देवानुप्रियो ! पार्श्वनाथ भगवान के शिष्य (थेरा भगवंता) स्थविर भगवंत (जाइसंपन्ना जाव) जो कि जातिसंपन्न यावत् कुलसंपन्न आदि विशेषणों वाले हैं वे पुष्पवतिक चैत्य में વાળા ભાગમાં, ત્રિક-ત્રણ રસ્તા ભેગા થતા હોય તેવા સ્થાનમાં, ચતુષ્કચારમાર્ગ મળતા હોય તેવા સ્થાનમાં, ચત્વર-અનેક માર્ગ મળતા હોય એવા स्थानमा, महा५२-२२०भाग ५२, ५थ-सामान्य भाग ५२, “जाव एगदिसा. भिमुहा णिज्जयति" यावत् महिशामा धावा साया. मेट स्थविर ભગવન્ત પુષ્પતિક ઉદ્યાનમાં પધાર્યાના સમાચાર જ્યારે તુંગિકા નગરી પગાટક આદિ માર્ગો પર પ્રત્યેક વ્યક્તિના મુખે સાંભળવામાં આવ્યા ત્યારે લોકો तुगिज नगरीमाथी ते स्थविर मन्तोनी पासे ४१ साज्या. “ तएण" 21 शते स्थणे स्थणे मा वातनी २ साता “ते समणोवासया" तु नगरीन ते श्राप । “ इमीसे कहाए द्धवा समाणा" मा पात समजाने " द्वन्द्वा जाव सद्दावे ति " अतिशय उष भने संतोष पाभ्या तेरे से भीतने मासाव्या " सहावित्ता एव वयासी” मासावाने तेस तेमनी साथे मा प्रमाणे वातयात ४२१॥ साया.-" एवं खलु देवाणुप्पिया ! पासावचि ज्जा" हेवानुप्रियो ! पाश्वनाथ भगवान शिष्य “ थे। भगवंता" स्थवि२ मत “जाइसंपन्ना जाव" २ तिसम्पन्न, दुखसम्पन्न मा ગુણોવાળા છે, (અહીં આગળના સૂત્રમાં આવતા સ્થવિર ભગવન્તનાં બધાં
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨