SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 873
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू० ९ पापित्यीयस्थविरव निम् ८५९ ___“निग्गहणहाणा" निग्रहप्रधानाः, निग्रहः इन्द्रियनियमनम् , तेन मधानाः वशीकृतेन्द्रिया इत्यर्थः । णिच्छयप्पहाणा" निश्चयपधानाः, निश्चयः अवश्यकरणीय प्रतिलेखनादिक्रियास्वीकारः, तत्त्वनिर्णयो वा, तेन प्रधानाः । " मह. वप्पहाणा" मार्दवप्रधानाः, मार्दवं = मृदुता, तेन प्रधानाः, । विनयभावसंपत्रा इत्यर्थः । “ अज्जवप्पहाणा" आर्जवप्रधानाः, आर्जवं = सारल्यं, तेन प्रधाना कौटिल्यवर्जिता इत्यर्थः । ननु जितक्रोधादि विशेषणैर्दिवादिप्रधानत्वं समायात्येव ततो मार्दव प्रधानादि विशेषणैः किं प्रयोजनम् इत्यत्राह जितक्रोधादि विशेषणेषु क्रोधादिनामुदयविफलता प्रोक्ता, अत्र तु तेषा मुदयाभावएवेति न दोषः, (णिग्गहप्पहाणा ) इन्द्रियों का नियमन करना इसका नाम निग्रह है, इस निग्रह से ये प्रधान धे अर्थात्-इन्द्रियों को इन्होंने अपने वश में कर लिया था। " णिच्छयप्पहाणा" अवश्यकरणीय प्रतिलेखनादिक्रियाओं का करना अथवा तत्त्वों का निर्णय-करना इसका नाम निश्चय है। इस निश्चय से ये प्रधान थे (महवप्पहाणा) मृदुता से ये प्रधान थे, अर्थात् पिनयभाव से सम्पन्न थे। (अजवप्पहाणा ) आर्जव से प्रधान थे-अर्थात् कुटिलतारूप परिणति से रहित थे। शंका-जितक्रोधादिविशेषणों से ही मार्दवादि धर्मों की प्रधानता इनमें ज्ञात हो ही जाती है फिर मादेवादि प्रधानविशेषणों का ग्रहण करने का क्या तात्पर्य है ? उत्तर-शंका ठीक है पर जो जितक्रोधादिविशेषण दिये गये हैं उन से यह बोध होता है कि वे क्रोधादिकों के उदय को विफल कर देते थे। णिग्गहप्पहाणा" धन्द्रियार्नु नियमन ४२७ तेनु नाम नि छ. तमा द्रयाने १२ री बीधी. ती. तेथी तमने निड संपन्न ४ा छ. (णिच्चय पहाणा) प्रतिमना माहि मावस्य: लियामा ४२वी अथवा तत्वाना निय ४२व। तेतुं नाम “निश्चय " छे. तसा सेवा निश्चयवाणा ता. “ महवप्पहाणा" ते। माथी युत ता मेटले विनयमावा . " अज्जबप्पहाणा" તેઓ આજીવગુણથી યુક્ત હતા એટલે કે કુટિલતા રૂપ પરિણતિથી રહિત હતા. શંકા– જિતક્રોધ આદિ વિશેષણોથી તેમનામાં માર્દવ આદિ ગુણેનું અસ્તિત્વ હતું તેમ જાણી શકાય છે. તે માદવપ્રધાન આદિ વિશેષણની शु. उपयोगिता छ ? ઉત્તર-શંકા બરાબર છે. પણ જિતક્રોધ આદિ વિશેષણે એ બતાવે છે કે તેઓ ક્રોધાદિના ઉદયને વિફલ કરી નાખતા હતા. એટલે કે ક્રોધાદિકેની મૂળમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy