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________________ - प्रमेयचन्द्रिा टीका श० २ उ०५ सू०९ पापित्यीयस्थविरवर्णम् ८५३ लज्जासंपन्ना, लाघवसंपन्ना ओजस्विनो यशस्विनो जितक्रोधा जितमाना जितमाया जितलोमा जितनिद्रा जितेन्द्रिया जितपरीषहाः जीविताशामरण भयविनमुक्ता भगवंतो) स्थविर भगवंत (पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं ) पांचसो अनगारों के साथ (संपरिचुडा) युक्त होकर ( जेणेव तुंगिया नयरी) जहां वह तुंगिका नगरी थी (जेणेव पुप्फवइए चेहए ) जहां वह पुष्प. वतिक नामक चैतत्य था ( तेणेव उवागच्छंति ) वहां पर आये । इस प्रकारसे यहां सम्बन्ध लगाना चाहिये । ये क्या करते हुए वहां आयेसो इसे प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं-(अहाणुपुव्वि चरमाणा, गामाणुगाम दूइज्जमाणा, सुहं सुहेणं विहरमाणा) तीर्थकरों कि परंपरा से विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विचरते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए वहां आये। ये स्थविर भगवंत (जाइसंपन्न ) जातिसम्पन्न (कुलसम्पन्ना) कुलसम्पन्न (बलसम्पन्ना) बलसम्पन्न (ख्वसम्पन्ना) रूपसम्पन्न (विणयसम्पन्ना ) विनयसम्पन्न, (णाणसम्पन्ना ) ज्ञानसम्पन्न, (दसणसम्पन्ना ) दर्शनसम्पन्न (चारित्तसम्पन्ना) चारित्रसंपन्न (लज्जासंपना) लज्जासंपन्न, (लाघवसंपन्ना) लाघवसम्पन्न (ओयंसी) तेयसी ओजस्वी, तेजस्वी (बच्चसी) प्रतापी (जससी) कीर्तियुक्त थे। (जियकोहा) उन्हों ने क्रोध को जीत लिया था (जियमाणा) मान को जीत लिया था (जियमाया ) माया को जीत लिया था ( जियलोहा ) लोभको जीत मत (पंचहि अणगारसएहिं सद्धिं) पांयस मगाशनी सांथ (संपरिघुग) साधने (जेणेव तुगिया नयरी जेणेव पुप्फवइए चेइए तेणेव उवागच्छंति) ते तुला નગરીની બહાર આવેલા પુષ્પતિક ચેત્યમાં પધાર્યા. તેઓ શું કરતાં કરતાં त्या माव्या, ते वे सूत्र॥२ ५४८ ४२ छ-(अहाणुपुविचरमाणा, गामाणुगाम इज्जमाणा, सुह सुहेण विहरमाणा) भे भे विहा२ ४२ता, गेड गामथी भीत ગામ જતા જતા, સુખ પૂર્વક વિહાર કરતા કરતા તેઓ ત્યાં પધાર્યા. તે સ્થવિર समत (जाइ संपन्ना ) जति संपन्न, ( कुलसंपन्ना,) अ स पन्न, (बलसंपन्ना) मस पन्न, (स्वसंवन्ना ) ३५४ पन्न, (विणयसंपन्ना) विनययुक्त, (णाण. संपन्ना) ज्ञानथी युद्ध, ( दसणसंपन्ना ) ४शन सपन्न, (चारित्तसंपन्ना) यार सपन्न, (लज्जासंपन्ना) eloron सपन्न, (लाघव संपन्ना) धस पन्न,(ओयसी तेयंसी) सावी, तस्वी, (वच्च'सी) प्रतापी मने (जसंसी) प्रीतियुत ता. (जियकोहा) तभणे धन लता दी। डतो. (जियमाणा) भानने ती सीधुडतु, (जियमाया) भायाने ती ती, (जियलोहा) सोलने तेमणे ती दीपो हतो (जियणिदा) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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