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________________ ८५२ भगवतीसूत्रे विधानः "अप्पाण भावेमाणा" आत्मानं भावयन्तः तपाकर्मभिः सह संयोजयन्तस्ते श्रमणोपासकाः विहरंति, विहरन्ति तिष्ठन्तीत्यर्थः ॥ सू-८ ॥ __मूलम्-" तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना, कुलसंपन्ना, बलसंपन्ना, रूवसंपन्ना, विणयसंपन्ना, णाणसंपन्ना, दसणसंपन्ना, चारित्तसंपन्ना, लज्जासंपन्ना, लाघवसंपन्ना, ओयंसी तेयंसी वचंसी जयंसी जियकोहा जिहमाणा जियमाया जियलोहा जियनिद्दा जियइंदिया जियपरिसहा जीविआसा, मरणभयविमुक्का जाव कुत्तियावणभूया, बहुस्सुया, बहुपरिवारा, पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिबुडा अहाणुपुर्दिवं चरमाणा गामाणुगाम दूइज्जमाणा, सुहं सुहेणं विहरमाणा जेणेव तुंगियानयरी जेणेव पुष्फवईए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिणिहत्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरांति ॥ ९ ॥ छाया--तस्मिन् काले तस्मिन् समये पापित्यीयाः स्थविरा भगवन्तो जातिसंपन्नाः कुलसंपन्ना, विनयसंपन्ना, ज्ञानसंपन्ना, दर्शनसंपन्नाश्चारित्रसंपन्नाः कर्म द्वारा-षष्ठ, अष्टम आदि तपस्याओं द्वारा (अप्पाणं भावेमाणा) अपनी आत्मा को संयोजित करते हुए (विहरंति) रहते थे ॥ सू० ८॥ (तेणं कालेणं ) इत्यादि। सूत्रार्थ-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) उसकाल में और उस समयमें (पासावचिन्जा ) पार्श्वनाथ भगवान के शिष्य के शिष्य (थेरा कम्मेहि ” तपोभ ।। (७४, ४ मा तपस्यायो ।२१) " अप्पाण भावमाणा" पोताना मामाने भावित ४२ता “ विहरति " २उता उता ॥ २८॥ " तेण कालेण" त्यादि। सूत्रार्थ-( तेणं कालेणं तेण समपण" ते जे मने ते समये “ पासा. बच्चिज्जा" पाश्वनाथ भगवानना शिष्याना शिष्य (“ थेरा भगवतो) स्थविर શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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