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________________ ८५४ भगवतीस्त्रे यावत् कुत्रिकापणभूता बहुश्रुता बहुपरिवाराः पञ्चभिरनगारशतैः सार्धं संपरिवृत्ता यथानुपूर्वी चरन्तो ग्रामानुग्रामं द्रवन्तः सुखं सुखेन विहरन्तो यत्रैव तुङ्गिकानगरी यत्रैव पुष्पवतीकं चैत्यम् तत्रैवोपागच्छन्ति उपागत्य यथाप्रतिरूपमवग्रहमवगृह खलु संयमेन तपसा आत्मानं भावयन्तो विहरन्ति ॥ ९ ॥ टीका- " तेणं कालेणं तेणं समरणं " तस्मिन् काले तस्मिन् समये " पासावच्चिज्जा " पावपत्यीया, भगवताः पार्श्वनाथस्य संतानीयाः " थेरा भगवंतो " स्थविरा भगवन्तः संयमयोगे सीदतः साधून ऐहिकामुष्मिकापायान् लियाथा ( जियणिद्दा ) निद्रा को जीत लिया था (जियइंदिया ) इन्द्रियों को जीत लिया था, (जियपरीसहा ) परीषहों को जीत लिया था (जीबियासमरणभयविमुक्का ) जीवन की आशा से और मरण के भय से ये सब रहितथे ( जाव कुत्तियावणभूया ) यावत् ये कुत्रिकापणरूपये ( बहुस्सुया बहुपरिवारा) बहुश्रुत थे और बहुत परीवार वाले थे। ( उवागच्छन्ता ) पुष्पवर्तक उद्यान में आनेपर (अहा पडिरूवं ओग्गहं ओगिहिता) वहां वे यथा प्रतिरूप अवग्रह ग्रहण कर (संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ) संयम और तप से अपनी आत्माक संयोजित करते हुए रहने लगे ॥ सू - ९ ॥ टीकार्थ- ' तेणं कालेणं तेणं समएणं ' उस काल और उस समय में (पासावचिज्जा ) पर्श्वनाथ के संतानीय 'थेरा भगवंतो ' स्थविर भगवन्त - स्थविर भगवन्त उन्हें कहते हैं जो संयम योग से शिथिलहोते " ८८ निद्राने कती सीधी हती, ( जियइंदिया ) इन्द्रियाने वश पुरी सीधी हुती, ( जिय परीसहा ) अनेपरीषा पर विश्य भेजव्या डतो, ( जीवियासमरणभयविमुक्का ) तेथे। सधा भुवननी आक्षाथी भने भरगुना लयथी रहित ता ( जाव कुत्तियावणभूया) तेथे पुत्रिकायाशु "न्यांमधी उपयोगी વસ્તુઓ મળે તેવી દુકાન સમાન हता. बहुस्सुया बहुपरिवारा " तेथे। महुश्रुत हुता भने भोटा परिवार वाजा हता. ( उवागच्छित्ता ) पुष्पवर्त' उद्यानमा भावीने ( अहापडिरूवं ओगाहं ओगिहित्ता ) शास्त्रनी आज्ञा भुल्य वनयादानी आज्ञा सर्धने ( संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ) तेथे સયમ અને તપથી પેાતાના આત્માને ભાવિત કરતા રહેવા લાગ્યા. टीअर्थ - ( तेण कालेणं तेणं समएणं, ते अणे चिचज्जा " पर्श्वनाथना शिष्यना शिष्य સ્થવિર ભગત્રન્તુ એમને કહે છે કે જેએ ." मने ते समये " पासवथेरा भगवंते । " स्थविर लगवांतસયમયાગથી શિથિલ થતા અન્ય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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