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________________ भगवतीसत्रे पुत्राः भवन्ति “उकोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवाणं पुत्तत्ताए हव्वं आगच्छइ" उत्कृष्टेन शतसहस्रपृथक्त्वं जीवानां पुत्रतया हव्यमागच्छन्ति उत्कृष्टत एकस्य ब्यादित आरभ्य नव लक्षपर्यन्तं जीवाः पुत्रतया भवन्ति, मत्स्यादीनामेकसंयोगेऽपि शतसहस्रपृथक्त्वं गर्भे उत्पद्यते निष्पद्यते चेति एकस्य एकभवग्रहणेन एकवारोत्पत्तिमाश्रित्येत्यर्थः लक्षपृथक्त्वं पुत्राणां भवतीति । मनुष्ययोनौ पुनर्वहूनामुत्पत्तावपि न बहवो निष्पधन्ते इति । एकस्य जीवस्य एकभवग्रहणे अनेके जीवाः पुत्रतया उत्पद्यन्ते तत्र कारणं किमिति ज्ञातुं गौतमः प्रश्नयति-" से केणटेणं भंते " तत्केनार्थेन भदन्त ! " एवं वुच्चइ जाव हव्वं आगच्छइ" एवमुच्यते यावत् हव्यमागच्छति, अत्र यावत् कारणात् “जहन्नेणं एक्कोवा, दो वा तिण्णि भ हो सकते है और (उकोसेणं ( ज्यादा में (सयसहस्सपुहत्तं जीवाणं पुत्तत्ताए हव्वं आगच्छइ ) जीवों का शत सहस्र पृथक्त्व एक जीव के एक साथ पुत्ररूप में उत्पन्न हो सकते हैं ! दो से लेकर नौ तक की संख्या का नाम पृथक्त्व सैद्धान्तिक परिभाषा के अनुसार कहा है । सो एक जीव के एक भव ग्रहण में दो लाख से लेकर नौ लाख तक जीव एक साथ में पुत्ररूप उत्पन्न हो सकते हैं । यह बात मत्स्यादिक जीवों में देखी जाती है-एक ही बार के संयोग में उनके जीवों का शतसहस्र पृथक्त्व गर्भ में उत्पन्न होता है और उतना ही जन्मता है । इसलिये एक जीव के एक ही बार के भवग्रहण में पुत्रों का लक्षपृथक्त्व उत्पन्न होता है ऐसा कहा गया है । मनुष्यस्त्री की योनि में यद्यपि एक बार के संयोग करने पर दो सो नौ लाख तक जीव उस के गर्भ में एक साथ उत्पन्न मे साथे पुत्र३पे उत्पन्न २४ छ, ( उक्कोसेण) अने पधारेमा धारे (सयसस्स पुहत्त जीवाणपुत्तत्ताए हव्व आगच्छइ) मे सामथा नवा એક સાથે પુત્રરૂપે ઉત્પન્ન થઈ શકે છે. સૈદ્ધાંતિક પરિભાષા અનુસાર બે થી નવ. सुधीनी सध्यान (५४५) ४ छ. तेथी सूत्रन। म सतावतi ( सयसहस्स पुहत्त) ५४ भूपामा मावस छ, माटे मेथी न4 am सध्या छ. माशते में જીવ એક ભવગ્રહણ કરે ત્યારે બે લાખથી નવ લાખ સુધીના જ એક સાથે પુત્રરૂપે ઉત્પન્ન થઈ શકે છે. આ વાત મસ્યાદિક જેમાં જેવા મળે છે–એક જ વારના સંયોગથી બેથી નવ લાખ જીવે ગર્ભમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને એટલાં જ જન્મ પામે છે. તેથી જ એવું કહ્યું છે કે “એક જ જીવના એક્વાર ના ભવગ્રહણથી લક્ષ પૃથકત્વ (બે થી નવલાખ) પુત્રો ઉત્પન્ન થાય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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