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प्रमेय चन्द्रिका टीका श० २ उ० ५ सू० २ गर्भस्वरूपनिरूपणम् ८१३ इथिवेएणं उदिण्णेणं पुरिसं पत्थेइ " स्त्री स्त्रीवेदेन उदीर्णेन उदयभावमासादि - तेन पुरुषं प्रार्थयते 'पुरिसो पुरिसवेएणं उदिण्णेणं इत्थि पत्थेइ" पुरुषः पुरुषवेदेनोदीर्णेन स्त्रियं प्रार्थयते "दो वि ते अण्णमणं पत्थे ति" द्वावपि तौ अन्योन्यं मार्थयेते. "तं जहा-इत्थी वा पुरिसं पुरिसो वा इत्थि" तद् यथा स्त्री वा पुरुष पुरुषो वा स्त्रियं प्रार्थयते ॥ १ ॥
॥ इति अन्ययूथिकप्रस्तावः ।। अन्ययूथिक प्रस्तावे परिचारणा उक्ता, तत्प्रस्तावाद् गर्भप्रकरणमाह-' उदग गन्भेणं' इत्यादि।
मूलम्-उदगगब्भेणं भंते! उदगगब्भे त्ति कालओ केवच्चिर होइ । गोयमा जहणणेणं एक समयं. उक्कोसेणं छम्मासा । तिरिक्खजोणियगब्भेणं भंते ! तिरिक्खजोणियगब्भत्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं अंतो मुहत्तं इसे प्रकट करते हुए भगवान कहते हैं ( इत्थि इथिवेएणं उदिण्णेणं पुरिसं पत्थेइ ) कि जब स्त्री के स्त्रीवेद का उदय होता है- तब वह पुरुष का अभिलाषा करती है और ( पुरिसो पुरिसवेएण उदिण्णेण इत्थिं पत्थेइ ) जब पुरुष के पुरुषवेद का उदय होता है तब वह स्त्री की अभिलाषा करता है । ( दो वि ते अण्णमण्णं पत्थेति) इस तरह अपने२ वेद के उदय में दोनों ही आपस में एक दूसरे की अभिलाषा करते हैं। (तं जहा ) जैसे- ( इत्थी वा पुरिस ) स्त्री पुरुष की अभिलाषा करती है (पुरुसो वा इत्थि) और पुरुष स्त्री की अभिलाषा करता है । सू ०१॥
इस प्रकार अन्ययूथिक प्रस्ताव में परिचारणा कही उसके प्रस्ताव से तेनुं ॥२७ शु? तो तेने मुखासी 24 प्रमाणे छे-( इत्थी इत्थीवेएण उदिण्णेण पुरिस पत्थेइ) न्यारे श्रीम. स्त्रीवहन। य थाय छ त्यारे ते स्त्री पुरुषनी मनिटापा ४२ छ, मने (पुरिसो पुरिस्रवेएण उइण्णेण इस्थि पत्थेइ ) न्यारे पुरुषमा पुरुषवहन हय थाय त्यारे ते सीनी मनिताषा ४२ छ. (दो वि ते अण्णमण्णं पत्थे ति ) मा रीते पोताना वेहने। य थाय त्या३ तेसो भन्ने से भीगनी मनिलाषा ४२ छ-( त जहा-इत्थी वा पुरिसं ) स्त्री पुरुषनी मनिषा ४२ छ, (पुरिसो वा इत्य) भने पुरुष स्त्रीनी मनिलाषा ४२ छे सू०१
આ પ્રમાણે અન્યતીથિં કેના મતનું ખંડન કરીને હવે સૂત્રકાર ગર્ભ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨