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________________ भगवतीसूत्रे यस्मिन् समये स्त्रीवेदं वेदयति नो तस्मिन् समये पुरुषवेदं वेदयति । 'जं समयं' इत्यत्र द्वितीया सप्तम्यर्थे “जं समयं पुरिसवेयं वेएइ नो तं समयं इथिवेयं वेएइ" यस्मिन् समये पुरुषवेदं वेदयति नो तस्मिन् समये स्त्रीवेदं वेदयति. "इत्थियवेयस्स उदएणं नो पुरिसवेयं वेएइ" स्त्री वेदस्योदयेन नो पुरुषवेदं वेदयति. " पुरिसवेयस्स उदयेणं नो इत्थिवेयं वेएइ" पुरुषवेदस्योदयेन नो स्त्रीवेदं वेदयति " एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं वेयं वेएइ" एवं खलु एको जीवः एकस्मिन् समये एकं वेदं वेदयति. "तं जहा " तद् यथा. 'इत्थीवेयं वा' "पुरिसवेयं वा” स्त्रीवेदम्वा पुरुषवेदम्बा. एकेन जीवेन एकदा एक एव वेदो वेद्यते न तु वेदान्तर मित्यत्र कारणमाह-" इत्थीइथिवेएणं " इत्यादि । " इत्थी कि (जं समय इत्थियवेयं वेएइ) जिस समय में वह स्त्री वेदका वेदन करता है ( णो तं समयं पुरिसवेयं वेएइ ) उस समय में वह पुरुषवेद का वेदन नहीं करता है (जं समयं पुरिस वेयं वेएइ) और जिस समय में वह पुरुष- वेद का वेदन करता है (तं समयं इत्थियवेयं नो वेएइ) उस समय में वह स्त्रीवेद का वेदन नहीं करता है । ( इत्थिय वेयस्स उदएणं नो पुरिसवेयं वेएइ ) स्त्रीवेद के उदय से पुरुषवेद का वेदन वह नहीं करता है और ( पुरिसवेयस्स उदएणं नो इत्थियवेयं वेएइ ) पुरुषवेद के उदय से स्त्रीवेद का बेदन वह नहीं करता है। ( एवं खलु एगे जीवे ) इस तरह एक जीव (एगेणं समएणं ) एक समय में ( एगं वेयं वेएइ ) एक ही वेद का वेदन करता है । (तं जहा इथिवेयं वा पुरिसवेयंवा ) जैसे - या तो वह स्त्री वेद का वेदन करता है या पुरुषवेद का वेदन करता है । एक जीव एक समय में एक ही वेद का वेदन करता है- दूसरे वेद का नहीं इसमें क्या कारण है ? सो स ०१ सभये साथ वहन ४२त। नथी. ४॥२६५ ॐ ( जं समय इत्थियवेयं बेएइ) २ समये ते खीवनु वेहन ४२ते। डाय (णो त समय पुरिसवेय वेएइ) ते समये ते ५२५वेनु वेहन ४२ नथी, (जौं समय पुरिसवेय वएइ त समय णो इत्थियवेय वेएइ ) न्यारे ते पु२५वेहेर्नु वेहन ४२ डाय छ त्यारे ते स्त्रीवर्नु वेहन ४२ते। नथी. (इत्थियवेयस्स उदएणं नो पुरिसवेएं वेएइ) श्रीवहन यथी ते पुरुषवर्नु वेहन ४२ नथी मने (पुरिसवेयस्स उदएणं नो इत्थियवेय वेएइ) पुरुषवेन। यथा ते खीवहर्नु ४२तो नथी. ( एवं खलु एगे जीवे एगेण समएण एग वेय वेएइ) २॥ शते थे ७१ मे समये मे ४ वेर्नु वहन 3रे छे. (तजहा-इत्थीयवेय वा पुरिसवेय वा) तो स्त्रीवहन वहन ४२ छ, sial પુરુષવેદનું વેદન કરે છે. એક જીવ એક જ સમયે એક જ વેદનું વેદન કરે છે, શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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