________________
८००
-
-
--
भगवतीसूत्रे टीका-" अन्नउत्थियाणं भंते !" अन्ययूथिकाः खलु भदंत ! " एवं आइक्खंति" एवं वक्ष्यमाणपकारेण. आख्यान्ति-हे भगवन् ! परदर्शनानु यायिनो वक्ष्यमाणप्रकारेण कथयन्ति । 'भासंति ' भाषन्ते “ पनवें ति" प्रज्ञापयन्ति “परूवें ति" प्ररूपयति । किमाख्यान्ति-इत्याह- तं जहा" तद् यथा-तदेव दर्शयति-"एवं खलु ' इत्यादि "एवं खलु नियंठे कालगए समाणे" एवं खलु निग्रंथः कालगतः सन् निग्रंथा-साधुः " कालगए " कालगतः " देवभूएणं अप्पाणेणं " देवभूतेनात्मना कारणभूतेन नो परिचारयति-इति अग्रिमेण संबन्धः देवभूतेन देवभावं प्राप्तेन देवोभूत्देत्यर्थः " से णं तत्थ णो अन्ने देवे" स खलु-निग्रंथ जीवदेवः 'तत्थ ' तत्र-देवलोके “णो अन्ने देवे" नो अन्यान् देवान् स्वव्यतिरिक्तान् " गो अण्णेसि देवाणं देवीओ" नो अन्येषां देवानां देवीः अन्येषामात्मव्यतिरिक्तदेवानां देवीः अन्यदेवसंबन्धिनी देवीः " अहिजुंजिय अहिजुंजिय परियारेइ” अभियुज्याभियुज्य स्ववशं कृत्वा नो परिचारयति न परिभुंक्ते
टीकार्थ- (अन्न उत्थिया णं भंते ) प्रभु से प्रश्न करते हुए गौतम पूछते हैं कि हे भदन्त ! अन्यतोर्थिकजन ( एवं आइक्खंति ) जो ऐसा कहते हैं-वक्ष्यमाणरूप से इस प्रकार से कथन करते हैं (भासंति) जनसमुदाय के बीच में ऐसा ही भाषण करते हैं (पनवेंति ) हेतु दृष्टान्त आदि द्वारा ऐसा ही जताते हैं (परुति ) शास्त्रों में वे ऐसी ही प्ररूपणा करते हैं-(तं जहा) कि-(एवं खलु नियंठे) कोइ भी निग्रन्थ साधु (कालगए ) जब मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तब वह परभव में देवगति को प्राप्त करता है अर्थात्-देवगति में जाकर जन्म लेता है वह वहां पर (देवभूएणं अप्पाणेणें ) देवरूप हुए अपने शरीर से (सेणं तत्थ) वह देव वहां पर अपने शरीर से (णो अन्ने देवे णो अन्नेसिं देवाणं देवीओ अहिजंजिय अहिजंजिय परियारेइ ) वह निर्ग्रन्थ साधु
ટીકાઈગૌતમસ્વામી મહાવીરસવામીને આ પ્રકારને પ્રશ્ન પૂછે છે ( अन्नउत्थियाण भते !) महन्त ! अन्य भतवाही! ( एवं आइक्ख ति) मे ४ छ, ( एवं भासते ) नसभडनी १२ये मे भाषा ४२ छ,( एवं पनवेति ) दृष्टांत द्वारा अबु मता छ, ( एव परूवें ति) सीमा मेवी ५३५३॥ ४२ छ ( तजहा ) ( एवं खलु निय'ठे ) ७ ५५ निथ साथ ( कालगए ) भृत्यु पाभान नाम ति प्रात ४२ छे.
त्यांनते (देवभूएण अप्पाण्ण) १३५ च्या पोताना शरीरथी. ( सेण तत्थ णो
देवे जो अन्नेसिं देवाण देवीओ अहिजुजिय अहिजुजिय परियारेइ) અન્ય દેવને અને અન્ય દેવીઓને પિતાને વશ કરીને તેમની
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨