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प्रमेयचन्द्रिका टीका श१२उ०५९०१ अन्यमतनिरासपूर्वकस्वमतनिरूपणम् ८०१ इत्यर्थः " अप्पणिच्चियाओ देवीओ अहिजुंजिय अहिजुंजिय परियारेइ" नो आत्मीयादेवीरभियुज्याभियुज्य परिचारयति. न परकीयादेवीः वशीकृत्य परिभुंक्ते न वा स्वकीयादेवी वशीकृत्य परिभुक्ते, किन्तु “ अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय परियारेइ" आत्मनैवात्मानं विकुळ विकुळ परिचारयति स्वात्मनैव स्वात्मानं देवीरूपेण देवरूपेण वा विकुर्य परिचारयति. तत्र देवलोकगतस्य निग्रंथजीवका जीव जो देवलोक में देव की पर्याय से उत्पन्न हो गया है वह अन्य देवों को और अन्यदेवों की देवियों को (अहिजंजिय अहिजंजिय) वश में कर कर के उनके साथ विषयसुख नहीं भोगता है यहां पर जो (अन्ने देवे, अन्नेसिं देवाणं देवीओ) ऐसा पाठ कहा गया है उसका तात्पर्य यह है कि वह अपने से भिन्न देवों के साथ और अपने से भिन्न देवों की देवियों के साथ वैषयिक सुख नहीं भोगता है। और ( णो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अहिजुंजिय अहिजंजिय परियारेइ) नहीं वह अपनी निज देवियों के साथ भी उन्हें वशीभूत कर वैषयिक सुख भोगता है यदि ऐसा है तो फिर वह किस तरह से वहां वैषयिक सुख भोगता है ? इस बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि-(अप्पा. णमेव अप्पार्ण विउव्विय परियारेइ) वह देव अपनी वैक्रिय शक्ति के द्वारा अपने निज के ही दो रूप बनाता है और उनके साथ ही वैषयिक सुख भोगता है-तात्पर्य यह कि देवलोक में गये हुए उस निर्ग्रन्थ जीव देव के पास अन्य सामग्री तो होती नही है-इसलिये वह (अप्पणामेव ) अपने आप ही-अर्थात्-अपनी वैक्रिय शक्ति से ही-अपने साथै विषयसु तो नथी. मह (अन्ने देवे, अन्नेसि देवाण देवीओ) એ જે પાઠ આવે છે તેનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે–તે પિતાનાથી ભિન્ન દેવોની સાથે અને પિતાનાથી ભિન્ન દેવેની દેવીઓ સાથે વિષયસુખ ભોગવત नथी. अने ( णो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अहिजुजिय अहिजुजिय परियारेइ) તે પિતાની દેવીઓને વશ કરીને તેમની સાથે પણ વિષયસુખ ભગવતે નથી तो ते त्यांची रीत विषयसुम माग छ ? ते ४ छ-( अप्पाणमेव अपाण विउब्विय विउब्धिय परियारेइ ) ते पोतानी वैठियशस्ति द्वारा पोताना र બે રૂપ બનાવે છે–એક દેવનું રૂપ અને બીજુ દેવીનું રૂપ અને તેની સાથે જ વિષયસુખ ભોગવે છેકહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે દેવલેકમાં ગયેલા તે निय हेवनी पासे अन्य सामग्री तो हाती नथी. तेथी ते ( अम्पणामेव ) પોતાની જાતે જ-એટલે કે પિતાની ક્રિયશક્તિથી પિતાના શરીરનાં બે રૂપ
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨