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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२३०५सू०१ अन्यमतनिरासपूर्वकस्वमतनिरूपणम् ७९७ तरेषु देवलोकेषु देवतया उपपन्नो भवति महर्दिकेषु, यावन्महानुभावेषु दूरगति केषु चिरस्थितिकेषु स खलु तत्र देवो भवति महर्द्धिको यावत् दशदिश उद्योतयन् प्रभासयन् यावत् प्रतिरूपः । स खलु तत्र अन्यान् देवान् अन्येषां देवानां देवीरभियुज्यते एवं आहेसु) सो जो उन्हों ने ऐसा कहा है (मिच्छं ते एवं आहेसु) सो ऐसा वह उन्हों ने मिथ्या कहा है । ( अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि भासामि, पन्नवेमि परूवेमि ) मैं तो हे गौतम ! ऐसा कहता हूं -ऐमा ही भाषण करता हूं ऐसी ही प्रज्ञापना करता हूं ऐसी ही प्ररूपणा करता हूं कि ( एवं खलु नियंठे कालगए समाणे ) कोई निर्मन्थ – कालगत होकर अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवइ ) किसी एक देवलोक में देवकी पर्याय से उत्पन्न हो जाता है ( महडिएस्सु जाव महाणुभावेलु दूरगइएस्सु चिरटिइएसु ) सो भी वह सामान्य देवलोकों में उत्पन्न नहीं होता किन्तु जो देवलोक थडी बडी ऋद्धियों से संपन्न होते हैं-यावत् महावभावशाली हाते हैं, दूरतक जाने की शक्ति से युक्त ऐसे देवों से सहित होते हैं तथा जिनमें आयु बहुत लंबी होती है ऐसे देवलोकों में से किसी एक देवलोक में वह उत्पन्न होता है । ( से णं तत्थ देवे भवइ महडिए जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे जाव पडिरूवे ) वहां उत्पन्न होकर वह नियंन्य ऐसा देव होता है कि जिसकी महान् ऋद्धि होती है यावत् जोदशों
प्रश्नमांनु समस्त ४थन अड) ४२वानु) (जे ते एवं आहेसु ) तेमणे रे छे ते (मिच्छ ते एवं आहेसु) तेमणु मिथ्या (मोटू) धुं छे. (अहं पुण गोयमा ! एवं आइक्खामि, भासामि, पन्नवेमि, परूवेमि ) 3 गौतम ! હું તે એવું કહું છું, એવું ભાષણ કરું છું, એવી પ્રજ્ઞાપના કરું છું અને मेवी ५३५४४३ छु ( एवं खलु नियंठे कालगए समाणे ) निथ । पामीर ( अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवइ ) से व. avi हेवनी पर्याये न य य छ, ( महड्ढिएसु जाव महाणुभावसु दूरगइएसु चिरदिइएसु) सवे ते सामान्य सभा स्पन्न थये। न डाय, પણ અનેક ઋદ્ધિથી ભરપૂર દેવકમાં ઉત્પન્ન થયે હય, મહા પ્રભાવશાળી દેવલેકમાં ઉત્પન્ન થયો હોય, લાંબા આયુષ્યવાળા અને ઘણે દૂર સુધી જવાની शतिथी युत पसभा ते अन्न थयो डेय, ( से णं तत्थ देवे भवइ महडिढए जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणे पभासेमाणे जाव पडिरूवे ) त्यां अपन्न थयेला તે દેવની મહાન ઋદ્ધિ હોય, એવું દેદીપ્યમાન સ્વરૂપ હોય કે જે દસે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨