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प्रमेयचन्द्रिका टीका २० २ १० ४ सू० १ इन्द्रियस्वरूपनिरूपणम् ७८१ कृतम् , ते च नारकाः पश्चेन्द्रिया भवन्तीति-इन्द्रियप्ररूपणाय तथा द्वितीय शतकादौ द्वारगाथायाम् 'इंदिय' इत्युक्तमितीन्द्रियप्रतिपादनाय च चतुर्थोंदेशकः प्रारभ्यते, तदनेन संबन्धेनायातस्य चतुर्थोद्देशकस्येदमादिमं सूत्रम् " कइणं भंते ! इंदिया पन्नत्ता" इत्यादि ॥ ___ मूलम्-" कइणं भंते ! इंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंच इंदिया पन्नत्ता । तं जहा-पढमिल्लो इंदियउद्देसओ नेय
वो, संठाणं, बहल्लं, पोहत्तं, जाव अलोगो, इंदिय उद्देसो ॥ ॥ सू०१॥
॥ द्वितियसए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥ २-४॥ छाया-कति खलु भदंत ! इन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! पञ्चेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि । तद्यथा-प्रथमः इन्द्रियोद्देशको ज्ञातव्यः संस्थानं बाहुल्यं पृथुत्वं यावत् अलोकः इन्द्रियोदेशकः ॥ सू० १॥
॥द्वितीयशतके चतुर्थ उद्देशः समाप्तः ॥२-४ ॥ उद्देशक में नारक जीवों का निरूपण किया गया है, वे नारक जीव पांच इन्द्रियों वाले होते हैं अतः इन्द्रियों की प्ररूपणा के लिये तथा द्वितीय शतक की आदि में द्वार गाथा में अभिहित इन्द्रिय पद के प्रतिपादन के लिये इस चतुर्थ उद्देशक को प्रारंभ किया गया हैं। इस संबंध से आये हुए इस चतुर्थे उद्देशक का यह पहिला सूत्र है-'कर्ण भंते)ड।
सूत्रार्थ-(भंते ) हे भदन्त ! (कइणं इंदिया पन्नत्ता) इन्द्रियां कितनी कही गई हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! पंच इंदिया पन्नत्ता ) इन्द्रियां पांच कही गई हैं । (तंजहा ) वे इस प्रकार से हैं- (पढमिल्लो इंदिय उद्देसओ नेयव्यो) प्रज्ञापना सूत्र के पंद्रहवें इन्द्रिय पद के प्रथम उद्देशक જીનું નિરૂપણ કર્યું છે, તે નારકે પાંચ ઈન્દ્રિય વાળા હોય છે, તેથી ઇન્દ્રિયની પ્રરૂપણાને માટે તથા બીજા શતકની શરૂઆતમાં આવતી દ્વાર ગાથામાં આવતા ઈન્દ્રિય પદનું પ્રતિપાદન કરવા માટે આ ચેશે ઉદ્દેશક શરૂ ध्य छे. तेनुं पडे सूत्र मा प्रमाणे छ ( कइण भाते ! त्यादि !
सूत्राथ-(भंते ) महन्त ! ( कइण इंदिया पण्णत्ता !) धन्द्रियो डेसी ४ी छ १ (गोयमा) हे गौतम ! (पंच इंदिया पण्णत्ता) धन्द्रिय पांय ४४ी छे. ( तंजहो) ते २मा प्रमाणे छ-( पढमिल्लो इंदिय उद्देसओ नेयव्वा ) प्रज्ञापन। સૂત્રના પહેલા ઉદ્દેશકના પંદરમાં ઈન્દ્રિયપદનું અહીં કથન કરવું જોઈએ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨