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भगवतीस्त्रे टीका--" कइण भंते इंदिया पन्नत्ता" कति खलु भदन्त ! इन्द्रियाणि मज्ञप्तानि । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि "गोयमा" हे गौतम ! पंच मंदिया पनत्ता" पञ्चेन्द्रियाणि प्रज्ञप्तानि. "तं जहा" तद्यथा. " पढमिल्लो इंदियउद्देसओ नेयच्यो" प्रथम इन्द्रियोद्देशको नेतव्यः प्रज्ञापनायामिन्द्रियपदाभिधानस्य पञ्चदशपदस्य प्रथमउद्देशकोऽत्र नेतव्यो ज्ञातव्य इति ।
तत्र गाथा प्रदर्शितानीमानि द्वाराणि-" संठाणं " इत्यादि "संठाणं" बाहल्लं पोहत्तं जाव अलोगो इंदिय उद्देसो” संस्थानं बाइल्य पृथुत्वं यावत् का यहां कथन करना चाहिये (संठाणवाहल्लं पोहत्तं जाव अलोगो) तथा उसमें कहे अनुसार इन्द्रियों का आकार, बाहल्य-पृथुत्व भी कहनां चाहिये यावत् अलोक तक का विवेचन वाला समस्त इन्द्रिय उद्देशक यहां कह देना चाहिये।
टीकार्थ-(कइणं भंते ! इंदिया पन्नत्ता) हे भदन्त ! इन्द्रियां कितनी कही गई हैं ? तात्पर्य इस प्रश्न का यह है कि जिनके द्वाराजीव की पहिचान की जाती है वे जीव की लिङ्गरूप इन्द्रियां कितनी होती है ?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु महावीर गौतम से कहते हैं कि (गोयमा ) हे गौतम ! (इंदिया) वे इन्द्रियां (पंच पनत्ता) पांच कही गई हैं । (तंजहा) वे इस प्रकार से हैं-(पढमिल्लो इंदिय उद्देसओ नेयन्वो) प्रज्ञापनासूत्रमें इन्द्रिय पद नाम का पन्द्रहवां पद है, उस पद का प्रथम उद्देशक यहां जानना चाहिये । वह उद्देशक कहाँ तक लेना चाहिये ? इसके लिये कहते हैं (संठाणवाहल्लं पोहत्तं जाव अलोगो इंदिय उद्देसो) संस्थान बाहल्य पृथुत्वसे लेकर ( अलोक) पर्यन्त पच्चीस द्वारों से युक्त दो गाथाएँ ग्रहण करनी चाहिये वे दो गाथाएँ इस प्रकारसे हैं(संठाण बाहल्ल' पोहत्त जाव अलोगो) तथा तेwist प्रमाणे धन्द्रियानी આકાર, દીર્ઘતા આદિનું પણ વર્ણન કરવું જોઈએ. અલેક પર્વતના વિવેચન વાળો સમસ્ત ઇન્દ્રિય ઉદ્દેશક અહીં કહેવો જોઈએ.
टी -(कइण भंते ! इंदिया पन्नत्ता ) 3 महन्त ! इन्द्रियो टी डी છે ? પ્રશ્નનું તાત્પર્ય એ છે કે જેમના દ્વારા જીવને ઓળખવામાં આવે છે, તે જીવની નિશાની રૂપ ઈન્દ્રિયો કેટલી છે? આ પ્રશ્નને મહાવીર પ્રભુ આ પ્રમાણે वाम मा छ-(गोयमा ! इंदिया पंच पन्नत्ता ) 3 गौतम ! न्द्रियो पांच ही . ( तजहा ) ते ४ा। 21 प्रमाणे छ- ( पढमिल्लो इंदियउद्देसओ नेयम्वो) प्रज्ञापन सूत्रमा (छन्द्रिय) नामर्नु ५४२९५६ छ, ते पहने। પહેલે ઉદ્દેશક વાંચવાથી આ વિષે જાણવા મળશે તે ઉદ્દેશક કયાં સુધી qie १ (संठाण बाहल्ल पोहत्तं जाव अलोगो इंदिय उद्देसो) संस्थान माईत्य पृथु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨