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भगवतीस्त्रे ज्जित्ता" एकादशाङ्गान्यधीत्य " बहुपडिपुण्णाई" बहुप्रतिपूर्णानि “दुवालसवासाई" द्वादशवर्षाणि "समण्णपरियागं पाउणित्ता " श्रामण्यपर्याय पालयित्वा " मासियाए सलेहणाए " मासिक्या संलेखनया “ अत्ताणं झूसित्ता' आत्मानं जोषयित्वा " सर्द्वि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता" पष्टिं भक्तानि अनशनेन छित्त्वा " आलोइय पडिक्कते" आलोचितप्रतिक्रान्तः आलोचितं गुरवे निवेदितं यदतिचारजातं तत्पतिक्रान्तम् अकरणविषयीकृतं येनासौ आलोचितप्रतिक्रान्तः अथवा आलोचितश्चासौ आलोचना पापप्रकाशेनालोचनाग्रहणात् प्रतिक्रान्तश्चमिथ्यादुष्कृतदानात् । इति आलोचितप्रतिक्रान्तः । " समाहिपत्ते' समाधिप्राप्तः शान्त चित्तः "अणुपुविए" आनुपूर्व्या क्रमेण "कालंगए" कालंगतः मरणं प्राप्तः ॥१६॥ भगवान् महावीर के (तहारूवाणं थेराणं अंतिए) तथा रूपवाले स्थविरों के समीप (सामाइयमाझ्याई) सामाइक आदि (एक्कारस अंगाई) ग्यारह अंगों का ( अहिजिता ) अच्छी तरह से अध्ययन करके ( बहुपडिपुण्णाइं) ठीक (दुवालसवासाइं) बारह वर्षतक (सामण्णपरियागं पाउणित्ता) श्रामण्यपर्याय का पालन किया-उसे पालन करके (मासियाए संलेहणाए) एक मास की संलेखना द्वारा उन्हों ने ' असाणं झूसि. त्ता' अपनी आत्मा को युक्त करते हुए अर्थात्-लगातार एक महिने तक संलेखना का पालन करते हुए 'सहि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता' अनशन द्वारा साठ भक्तों का छेदन करके 'आलोपडिक्कते' गुरु के समक्ष अपने अतिचारों के निवेदन करने से, उनसे फिर नहीं करने के कारण प्रतिक्रान्त बन अथवा अपने पापों के प्रकाशन द्वारा गृहीत मिथ्यादुष्कृत से आलोचित होकर प्रतिक्रान्त बन ‘समाहिपत्ते ' शान्त चित्त होकर 'आणुपुवीए' क्रमशः 'काल गए' कालधर्मको प्राप्तकिया।सू०१६॥ भगवान महावीरना ते ४२ना स्थविरे। पासे । सामाइयमाइयाइं” सामायि माह " एकोरसअंगाई ” भनियार मौन “अहि जित्ता" सारी शते मध्ययन रीने “ बहुपडिपुण्णाई' पूरा “ दुवालसवासाई” मा२ वर्ष सुधी “ सामण्णपडियागं पाउणित्ता " श्रमश्य पर्यायतुं पालन ज्यु तेनु पासन ४२ " मासियाए संलेहणाए" मे भासना सयाराथी “ अत्ताणं झूसित्ता" पातानी गतने युद्धत रीन-" सर्व्हि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता" मनशन द्वारा सा महतोनु छैन रीन ( २८ ५१स पू२॥ ४शने ) “ आलोइय पडिक्कते " ગુરૂની સમક્ષ પોતાના અતિચારે ( દે ) નું નિવેદન કરીને અને એ રીતે तेनी मालोयन द्वारा प्रतिन्ति मनाने " समाहिपत्ते" शान्त यित्ते “आणु. पुबीए" मश: “काल गए" धर्म पाभ्या ॥ सू० १६ ।।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨