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भगवतीसूत्रे यस्यासौ सिरस्यावतः तम् शिरसि परिभ्रमणयुक्तम् “ मत्थए अंजलिं ? " मस्तके अञ्जलिं कृत्वा पूक्तिमप्रकारेणाञ्जलिं मस्तके कृत्वेत्यर्थः " एवं वयासी" एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत् उक्तवान् । किमुक्तवान् तत्राह 'नमोत्थुणं" इत्यादि । “ नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं " नमोऽस्तु खलु अर्हद्भ्यो भगवद्भ्यो यावत्सं प्राप्तेभ्यः सिद्धिगतिनामकस्थानं गतेभ्यो यावत्पदेन "नमोत्थुणं " इत्यस्य सर्वोऽपि पाठः संग्राह्यः " नमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स" नमोऽस्तु खलु श्रमणाय भगवते महावीराय 'जाव संपाविउकामस्स' यावत् सप्राप्तुकामाय सिद्धितिनामधेयस्थान प्राप्तये प्रयतमानाय " वंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इहगए" वन्दे खलु भगवन्तं तत्रगतं समवसरणेस्थितमिहगतः इहैव स्थितोऽहमित्यर्थः " पासउ मे भगवं नत्थगये इहगयं" पश्यतु मां भगके रूप में जाड़ा कि जिससे दशों हो नख आपस में एक दूसरे नखों के साथ मिल जावें-फिर उस अंजलि को उन्हों ने मस्तक के पास से दक्षिण की ओर से लेकर नीन बार घुमाया, घुमाकर फिर उन्हों ने उस अंजलि को अपने मम्तक-ललाट के पास रखा-और इस प्रकार से उच्चारण किया-उन्होंने क्या कहा -सो कहा जाता है--(नमोत्थुगं अरिहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं) यावत् सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त हुए अर्हन भगवंतों को मेरा नमस्कार हो । ( नमोत्युर्ण समणस्स भगवओ महावीरस्स ) श्रमण भगवान् महाबोर को मेरा नमस्कार हो । (जाव संपावि उकामस्ल ) क्यों कि वे यावत् सिद्धिगति नामक स्थान की प्राप्ति करने वाले हैं। ( वदामि गं भगवंतं तत्थगयं इह गए) यहां पर रहा हुआ मैं समवसरण में स्थित उन श्रोश्रमण भगवान महावीरप्रभु को वंदना करता हूं ( पास र मे भगव तत्थगए इह गयं) ત્યાર પછી તેમણે પિતાના અંજલિબદ્ધ હસ્ત મસ્તકની પાસેથી જમણું બાજથી શરૂ કરીને વંદણું કરવા માટે ત્રણ વાર ઘુમાવ્યા અને ત્યાર બાદ भस्त (सा)नी पासे मत राजीन ॥ प्रमाणे मोत्या-" नमोत्थुणं अम्हिताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं " सिद्धि ति नामना स्थानमा विमान मत गवताने भातं नमः२ , “ नमोत्थुणं समणस भगवओ महावीरम्स " श्रम भगवान महावीरने भारी नभ२२ 1. "जाव संपाविउ कामास" मावान मारने नम२४१२ । भाटे ४२१ तेसो सिद्धिगति प्रास पाना डावाथी तमने नमः४१२ ४२ छे. “वंदामि गंभगवंतं तत्थगय इह गए " मा स्थाने २साहु सभासरमा विराभान श्री श्रम नावान महावीरप्रसुने ! ४३ छु. (पासउ भे भगव तत्थगए इगय) समासमा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨