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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १६ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ७३७ वान् तत्र गत इह गतम् ज्ञानदृष्टया "त्ति कटु" इति कृत्वा " वंदइ नमसह" चन्दते नमस्यति " बंदित्ता नमंसित्ता एवं वयाती" वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत “ पुचि पिमए" पूर्वमपि मया “ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए" श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके = समीपे “ सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीयाए" सर्वेः प्राणातिपातः प्रत्याख्यातो यावज्जीयम् "जावमिच्छादंसणसल्ले पच्चक्खाए जावज्जीवाए " यावत् मिथ्यादर्शनशल्यं प्रत्याख्यातं यावज्जीवम् । अत्र यावत्पदेन ' मुसाकराए पच्चक्खाए " इत्यारभ्य "मायामोसा पच्च.
खाए" इत्यन्तानां अष्टादशानां पापानां ग्रहणं कार्यम् 'इयाणि पियणं" इदानीमपि च खलु "समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए श्रमणस्य भगवतो महावीर स्यान्तिके " सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खामि जावज्जीवाए " सर्व प्राणातिपातं समवसरण में स्थित हुए वे भगवान अपनी ज्ञानदृष्टिद्वारा यहां रहे हुए मुझे देखें । (त्तिकट्टु ) ऐसा कहकर उन स्कन्दक अनगार ने ( वदह नमंसह ) श्रप्रण भगवान महावीर को वहां से वंदना की उन्हें नमस्कार किया (वदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार कर फिर उन्होंने ( एवं वयासी) इस प्रकार से कहा-( पुदिव पि मए समणस्स भग वो महावीरम्स अंतिए) मैंने पहिले भी श्रमण भगवन महावीर के समीप ( सम्बे पायाइवाए पच्चरवाए जावज्जीवाए ) समस्त प्राणातिपातों का जीवन पर्यन्त त्याग कर दिया था (जार मिच्छा दसण मरले पच्चरवाए जावज्जीवाए ) यावत् मृपावाद से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक के अठारह पापों का भी जीवन पर्यन्त त्याग कर दिया था। ( इयाणि पि य गं समस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खामि जावज्जीवाए ) अब इस समय વિરાજતા ભગવાન મહાવીર તેમની જ્ઞાનદષ્ટિ દ્વારા અહીં રહેલા મને જે " ति कट" से प्रभारी डीन ते २४६४ मारे " वदह नमसह " श्रम भगवान महावीरने त्यांथी १ ! नम२४.२ ४ा, “वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी ” ! नभ२४.२ ४शन 241 प्रमाणे मोत्या. “ पुवि पि मए समणस्स भगवओ महावोरस्स अतिए" में पडसा लगवान महावीरनी समक्ष " सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए " समस्त प्राणातिपाताना न ५-1 त्याग या हतो. “जाव मिच्छादसणसल्ले पञ्चखाए जावज्जीवाए " તથા મૃષાવાદથી લઈને મિથ્યાદર્શન શલ્ય પર્યન્તના અઢારે પાપોને મેં
नयत त्या ये डतो. “ इयाणि पि य णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए सब्वे पाणाइवाए पच्चक्खोमि जावज्जीवाए " मत्यारे ५ भगवान मी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨