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भगवतीसूत्रे विसर्पद हृदयः इत्यन्तपदजातस्य ग्रहणं भवति “उठाए उठेइ" उत्थया उत्तिष्ठति " उहिता" उत्थाय " समणं भगवम् महावीरम् " श्रमणं भगवन्तं महावीरं "तिक्खुत्तो" त्रिकृत्वः त्रिवारम् “आयाहिणपयाहिणं करेइ " आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति "करित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता” कृत्वा वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा “सयमेव पंचमहब्बयाई आरोवेइ" स्वयमेव पञ्चमहाव्रतान्यारोपयति स्वीकरोति आरोवित्ता आरोप्य "समणाय समणीओय खामेइ" श्रमणांश्च श्रमणीश्व क्षमयति 'खामित्ता' क्षमयित्वा तहारूवेहि थेरेहिं कराइहिं सद्धिं तथारूपैः स्थविरैः कृतादिभिः सार्द्धम् 'विउलं' विपुलम् ‘पव्वयं' पर्वतम् ‘सणियं सणियं' शनैः शनैः 'दुरुहेइ' दरोहति विपुलगिरिनामकं पर्वतं कृतादिस्थविरैः सह मन्दगत्या समा. रोहति इत्यर्थः ‘मेहघणसंनिगास' मेघधनसंनिकाशम् घनमेघसदृशं कृष्णवर्णम् 'देवभर गया ' तब वे उसी समय 'उद्वाए उठेइ ' अपनी ही उत्थान शक्ति से उठे और 'उट्टित्ता' उठकर उन्हों ने 'समग भगवं महावोर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ' श्री श्रमण भगवान् महावीर प्रभु को तीन बार प्रदक्षिणा पूर्वक 'वंदइ नमसइ' वंदना की नमस्कार किया वदित्ता नमसित्ता' वंदना नमस्कार कर 'सयमेव पंचमहत्वयाई आरोवेइ ' अपने आप ही उन्हों ने पांच महाव्रतों को स्वीकार कर लिया। आरोवित्ता' पांच महाव्रतों को स्वीकार करने के बाद फिर उन्हों ने 'समणा य समणीओ य खामेइ ' श्रमण और श्रमणोयों से खमतखामणा किया। 'खामित्ता' खमतखामणा करके फिर वे 'तहारूवेहि थेरेहिं कडाइहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं सणियं दुरुहेह' विपुलाचल पर्वत पर उन तथारूप कडाइ-स्थवोरों के साथ
से मत “ उढाए उठेइ" तेगा तेमनी उत्थानशतिथी या, अने " उट्रिता ” जीने “ समणं भगय महाबीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ " तेम ३ पा२ प्रदक्षिण पूर्व श्रम भगवान महावीरने " वंदइ नमसह"
या नभा२ ४ा. " वंदित्ता नमंसित्ता" ! नमः४२ ४रीने " सयमेव पंचमहव्वयाइं आरोवेइ” पानी ते ४ तमना पांय भावतो ॥२
या “ आरोवित्ता " पाय मानतानो वा ४.२ ४रीने तेभए “ समणा य समणीओ य खामेइ " श्रम मने श्रमणियोथी ( साधु साध्वीन ) ममतमाभयां या. "खामित्ता" ममतमाभण ४शन "तहारूवेहि थेरे िकडाइहिं सद्धिं विउलं पव्वयं सणियं सणिय दुरुहेइ” २ स्थविरे। समना (सथा।) ની વિધિ કરાવવામાં કુશળ હતા એવા સ્થવિરોને સાથે લઈને ધીમે ધીમે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨