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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १६ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ७३३ पर्यायं पालयित्वा मासिक्या संनलेखमयाऽऽत्मानं जोषयित्वा षष्टिभक्तानि अनशनेन छित्त्वा आलोचितप्रतिक्रान्तः समाधिमाप्तः आनुा कालं गतः।मू०१६।। ___टीका-" तएणं से खंदए अणगारे" ततः खलु स स्कन्दको नगारः " समणेणं भगवया महावीरेणं " श्रमणेन भगवता महावीरेण " अब्मणुभाए समाणे" अभ्यनुज्ञातः सन् “ हतुढे जाव हियए " हृष्टतुष्ट यावद् हृदय इह यावत् पदेन हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः प्रीतमनाः परमसौमनस्थितः हर्षेवश स्कन्दक अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर के तथारूप स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अच्छी तरह से अध्ययन करके' पूरे बारह वर्षतक श्रामण्य पर्याय का पालन करके (मासिघाए संलेहणाए) एक मास की संलेखना से (अत्ताणं झूसित्ता) अपने आप को युक्त कर के' (सढि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता) साठ भक्तों का अनशन द्वारा छेदन करके ' (आलोइयपडिक्कते) एवं आलोचना तथा प्रतिक्रमण करके (समाहित्ते ) समाधि प्राप्तकर (आणुपुवीए कालधम्मगए ) क्रमश काल. धर्म को (मरणको) प्राप्त किया ॥ सू० १६॥ ___टीकार्थ-(तएणं से खदए अणगारे समणेणं भगवया महाधीरेणं अन्भणुनाए समाणे ) इसके बाद अर्थात् संथारा करनेकी आज्ञोजय स्कन्दक अनगार ने श्रमण भगवान महावीर प्रभु से प्राप्त करली तब वे स्कन्दक अनगार भगवान की उस आज्ञा की प्राप्ति सेअपने आप बहुत ही अधिक हर्षित हुए ' उन्हें चित्त में इतना अधिक संतोष प्राप्त हुआ कि कुछ कहा नहीं जा सकता उनका हृदय आनंदोल्लास से अत्यन्त
વિરની પાસે સામાયિક આદિ અગિયાર અંગેનું સારી રીતે અધ્યયન કર્યું भने पूरा मा२ वर्ष सुधा श्रम पर्यायर्नु पान ४ीन (मासियाए संलेहणाए ) से भासन संथाराथी ( अत्ताणं झूसित्ता ) पाताने यु४॥ ४शन (सद्धि भत्ताइ अणसणाए छेदेता) सा8 मतोतुं मनशन द्वारा छेतुन ४शन-सेट २८ ७५वास! पू२॥ ४२शन ( आलोइयपडिको ) मासोयना तथा प्रतिमा परीने ( समाहिपत्ते ) समाधि प्रात ४२रीने (आणुपुव्वीए कालधम्मगए ) मश: ७. यम पाभ्या-भ२६] पाया ॥ सू-१६ ॥
२ -" तएणं से खंदए अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्न. गुन्नाए समाणे " न्यारे २४४ मारने श्रम समान भावी२ सथा। કરવાની અનુજ્ઞા આપી ત્યારે તેમને મનમાં ઘણું જ હર્ષ થયે, તેમના ચિત્તમાં અવર્ણનીય સંતોષ થયે, અને તેમનું હૃદય આનંદેલવાસથી પરિપૂર્ણ થઈ ગયું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨