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भगवतीसूत्रे यथा पांडुरे प्रभाते रक्ताशोकप्रकाशे किंशुकशुकमुखगुंजर्द्धरागसदृशे कमलाकरपंड बोधके उत्थिते सूर्ये सहस्ररश्मौ दिनकरे तेजसा अलति सति भगवंतं महावीर वन्दित्वा नमस्यित्वा यावत् पर्युपास्य श्रमणेन भगवता महावीरेणाभ्यनुज्ञातः सन् स्वयमेव पंचमहाव्रतान्यारोप्य श्रमणांश्च श्रमणींश्च क्षमयित्वा तथारूपैः स्थविरैः प्रभु के समक्ष " मे श्रेयः, मेरे लिये श्रेयस्कार है आगामी दिवस जय रात्रि प्रकाशवाली हो जायगी तथा (फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए ) जब ऐसा प्रभात हो जावेगा कि जिसमें सामान्यतथा विकसित हुए कमल के दलों का और हरिणविशेष के नेत्रों का उन्मीलन-खिलना हो जावे अर्थात् धवल प्रकाश फैल जावे, तथा ( रत्ता सोयप्पगासे) रक्त अशोक वृक्ष के जैसे प्रकाशवाला, (किंसुरसुहट हगुंजद्धरागसरिसे) किंशुक-पलाश पुष्प, शुकमुख-तोते का मुख एवं गुजार्ध-रत्तिका के अर्धभाग जैसा (कमलागरसंडयोहए ) सरोवर आदि में कमल समूह को विकसित करने वाला ( सहस्सरस्सिम्मि) एक हजार किरणों वाला, (दिनयरे ) दिवस करने वाला (तेयसा जलते. सूरे उद्वियन्त्रि) तेजसे प्रदिप्त ऐसा सूर्य जब उदित हो जावेगा तब मैं (समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासित्ता) श्रमण भगवान महावीर के पास जाकर उनको वंदना करूँगा और नमस्कार करूंगा। वंदना नमस्कार करके यावत् उनकी पर्युपासना कर के (समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुन्नाए समाणे) उन श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त करूंगा, आज्ञाप्राप्त कर फिर मैं (सयमेव) अपने आप (पंच. फुल्लुप्पलकमल कोमलुम्मिलियम्मि अहा पडुरे पभाए ) मने भगाने तथा रिशानां नेत्राने विसावना२ सूर्यना प्रश ३ लय, (रत्त सोयप्पगासे) सात भरी ४वृक्षना व श वाणी, ( किंसुयसुहमुहगुंजद्धरागस रिसे ) કિશુક -પલાશ ખાખરાનું પુષ્ટ, પોપઆ મુખ સમાન, અને ચોઠીના અર્ધमाग समान सास गना, (कमलागरसंडवोहए ) सव२ महिमा भस वृन्होने विसित ४२।२।, ( सहासरस्सिम्मि) २४ २२पानी, (दिन. यर) हिवस ४२नारे। ( तेयसा जलंते सूरे उद्वियमि) तेथी दीप्यमान सूर्य स्यारे ६५ पाभरी त्यारे ( समण भगवं महावीर वंदित्ता जाव पज्जुवासित्ता) હું શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પાસે જઈને તેમને વંદણા નમસ્કાર કરીશ.
। नम२४.२ ४शन तमनी पथुपासना पर्यन्तनी विधि ४ीन (समणेण भगवया महावीरेणां अभणुनाए समाणे) हु श्रमण भगवान महावीरनी माज्ञा सश. माज्ञा धन (सयमेव ) भारी ते १ (पंचमहव्वयाइं आरोवेत्ता)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨