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________________ - प्रमैयचन्द्रिा टीका २० २ उ० १ सू० १५ स्कन्नकचरितनिरूपणम् ७११ जीवं जीवेन गच्छामि जीवं जीवेन तिष्ठामि यावत् ग्लायामि यावदेवमेवाहमपि सशब्दं गच्छामि सशब्दं तिष्ठामि, तदस्ति तावन्ममोत्थानं कर्मबलं वीर्य पुरुषकार पराक्रमस्तद् यावत्तावन्ममास्ति उत्थानं कर्मबलं वीर्यम् पुरुषकारपराक्रमो यावच्च मम धर्माचार्यों धर्मोपदेशकः श्रमणो भगवान् महावीरो जिनः सुहस्ती विहरती तावता मम श्रेयः कल्यं प्रादुष्प्रभातायां रजन्यां फुलोत्पलकमलकोमलोन्मीलिते रूप से दीख रही हैं (जीवं जीवेण गच्छामि )मैं शरीर बल से नहीं, किन्तु आत्मबल से चलता हूं, (जीवं जीवेण चिट्ठामि) आत्मपल से ही ठहरता हूं (जाव गिलामि ) यावत् बोलते २ भी ग्लानियुक्त हो जाता हूं (जाव एवामेव अहंपि ससदं गच्छामि, ससदं चिट्ठामि ) यवत् इसी तरह से मैं भी चट-चट शब्द करते हुए चलता हूं और चट-चट शब्द करते हुए ही बैठता हूं (तं अस्थि ता मे उट्ठाणे) फिर भी मुझ में अभी उत्थान शक्ति है ( कम्मे, बले, बोरिए, पुरिसकारपरक्कमे ) कर्म है पल है, वीर्य है, पुरुषकार पराक्रम है (तं जाव ता मे अस्थि उठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे ) तो जबतक मुझ में उत्थान कर्म, वल, वीर्य, और पुरुषार्थ पराक्रम हे और (जाव य मे धम्मायरिएधम्मोवदेसए सुहत्थी समणे भगवं महावीरे ) जबतक मेरे घर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर (जिणे) जिन (सुहत्थी) पुरुषों में गन्धहस्ती जैसे (वीहरइ) विचरते हैं अर्थात् विद्यमान हैं ( तावता-मे सेयं कल्लं पाउपभायाए रयणीए ) नबतक अर्थात् भगवान् महावीर गच्छामि ) शरीरमयी नडी ५ मामयी या छु. (जीव जीवेण चिट्ठामि ) मामाथी ४ स्थि२ २९ छु, ( जाव गिलामि) मारता ५५ अनि भनुम छु. (जाव एवामेव अपि ससदं गच्छामि ससहचिट्ठामि) हुँ જ્યારે ચાલું છું ત્યારે મારા હાડકાંના ઘર્ષણથી ખટ-ખટ અવાજ થાય છે, मेसती मते ५८ पट वास थाय छे. ( त अस्थि ता मे उट्ठाणे) छतi ५९ ९७ मारामां मत्थान शति छ. ( कम्मे' बले, वीरिए पुरिसक्कार• परक्कमे ) म छे, पण पाय छ भने पुरु५४।२ ५२॥ छ (त जावता मे अत्थि उढाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कारपरक्कमे ) तो न्यां सुधा भारामा उत्थान शन्ति, पीय भने पुरुषार्थ ५२॥भ भानु छ, ( जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवदेसए सुहत्थी समणे भगवौं महावीरे जिणे विहरइ) જ્યાં સુધી પુરુષોમાં ગન્ધહસ્તી સમાન મારા ધર્માચાર્ય ધર્મોપદેશક, જિને १२ श्रम लगवान महावीर विद्यमान छे, (तावता मे सेय' कल्ल' पाउप्पभायाए रयणीए ) त्या सुधा भाइ श्रेय छे. तो आती . रात्रि पूरी थाय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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