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भगतीसरे तिष्ठति, आत्मबलेनैव स्थित्यादि क्रियां करोति न तु शरीरबलेन पुनश्च "भास भासिता विगिलाइ" भाषां भाषित्वाऽपि ग्लायति । "भासं भासमाणे गिलाइ" भाषां भाषमाणो ग्लायति " भासं भासिस्सामीति गिलायति " भाषां भाषिष्ये इति ग्लायति, अनेन कालत्रयेऽपि भाषमाणे ग्लानि मृचिता। __ स स्कन्दकोऽनगारः पुनः कीदृशो जातः, इति दृष्टान्तेन विशदयति 'से जहाणामए' इत्यादि, ' से जहानामए' तद् यथा नाम यथा 'कट्ठसगडियाइ वा' काष्टशकटिका इति वा काष्ठेन भृता परिपूरिता शकटिका काष्ठशकटिका, शुष्क काष्ठपरिपूरितशकटिकेत्यर्थः “पत्तसगडियाइ वा” पत्रशकटिका इति वा शुष्क पत्र भृतशकटिका तिलसगडियाइ वा । तिलशकटिका इति वा तिलफलीसंभृता शकटिका "भंडसगडियाइ वा" भांडशकटिका इति वा, भाण्डानां मृन्मयभाजनानां भृता शक टिका “एरंडकट्ठसगडियाइ वा" एरण्डकाष्ठशकटिका इति वा, एरण्डकाष्ठभृता वा तरह वे आत्मबल से ही खडे रहते थे शरीर बल से नहीं । पुनः (भास भासित्ता विगिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ, भासं भासिस्सामित्ति गिलाइ ) इन पदों से कालत्रय में भी बोलने में उन्हें रूचि नहीं होती थी, अपि तु ग्लानि ही होती थी यह बात सूचित की है। स्कन्दक अनगार की स्थिति-शारीरिकदशा-अब सूत्रकार दृष्टान्त द्वारा स्पष्ट प्रकट करते हुए कहते हैं-( से जहाणामए कट्टसगडियाइवा ) जैसे मानों कोई काष्ट समूह से-लकड़ियों से भरीहुई गाड़ी हो-( पत्तसगडियाइवा) पत्रों के समूह से लबालब भरी हुई कोई गाडी हो, (तिलसगडि. याइवा) तिलफली से भरी हुइ कोह गाड़ी हो, (भंडगसडियाइवा) भाण्ड-मिट्टी के बने हुए वर्तनों से भरी हुई कोई गाडी हो (एरंडसग. डियाइवा एरंड के काष्टसे भरी हुई कोइ गाडी हो, (इंगालसगडियाइ. SAn २उता उता, शरीरथी नही ( भास' भासित्ता विगिलाइ, भास भास माणे गिलाइ, भोस भानिस्सामित्ति गिलाइ ) म पो द्वारा सूत्रधार से शीવવા માગે છે કે ત્રણે કાળમાં તેમને બેસવાની રુચિ થતી નહીં, પણ બોલ વને પ્રસંગ આવે તે ગ્લાનિ જ થતી હતી. સ્કન્દક અણગારની શારીરિક હાલત કેવી થઈ ગઈ હતી તેનું સૂત્રકાર દષ્ટાન્ત દ્વારા ૨૫ષ્ટીકરણ કરે છે (से जहाणामए कटुसगडियाइवा) ansiथी मरेसी गाडी हाय, (पत्तसगडियाइ वा ) पहना समूडथी जीया माय मरेसी ॥डी डाय, (तिलसगडियाइ वा ) तसनी शिंगाथा मरेकी छडी डाय, (भडगसगडियाइ वा ) भाटीन पासणेथी मरेसी डी डाय, (इंगालसगडियाइ वा) ससा थी नरेदी 5 गाडी डाय, ( एरंडसगडियाइ वा ) मेरान टथी मरेवी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨