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________________ मेयचन्द्रिका टीका श० २७०१ सू० १४ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ७०५ " धमणिसंतए" धर्मनीसंततः धमनीसंततो नाडीव्याप्तः मांसक्षयेण परिदृश्यमान नाडीक इत्यर्थः " जाए यावि होत्था" जातथाप्यभूत् पूर्वोक्तरूपो जातः, घोरातिघोरतपश्चरणात् । ननु यदि तपः करणेन शरीरमेतादृशं जातं तदा उत्थानादि क्रिया तस्य कथं भवतीत्याह-'जीवं ज वेणं' इत्यादि । ‘जीवं जीवेणं' जीवजीवेन अत्र प्रथमो जीवशब्दः आत्मवाचकः द्वितीय नीवशब्दो बलवाचकस्तेन जीवजीवेन जीवबलेन 'गच्छइ' गच्छति गमनादिक्रियां करोति, आत्मबलेनैव चलनादि क्रियां करोति, न तु शरीरवले नेति भावः "जीवं जीवेण चिट्ठइ" जीवं जीवेन हो चुका था-अतएव-वे दुर्बल हो गये थे। (धमणिसंतए) मांसरहित हो जाने के कारण उनके शरीर में नाडियां स्पष्ट नजर पड़ने लगी थीं। सो यह सब उनके शरीर की हालत घोरातिघोरतपस्या के करने से हुई । अर्थात्-घोरातीघोर तपस्या के करने से उनका शरीर पूर्वोक्त स्थितिवाला बन गया पर उत्थानादि क्रिया वे कैसे करते थे, तो इस आशंका के परिहार निमित्त सूत्रकार कहते हैं-"जीवं जीवेणं गच्छह" जीव जीवेन गच्छति-वे शरीर के बल से नहीं चलते थे, अपि तु आत्मबल से ही चलते थे। यहां प्रथम जीव शब्द आत्मा का वाचक है और द्वितीय जीव शब्द बल का वाचक है । आत्मबल से ही गमनादि क्रिया करते थे शरीर के बल से नहीं। इस तरह स्कन्दक अनगार शारीरिक बलकी क्षीणता होने पर भी आत्मबल से ही चलनादि रूप क्रिया करते थे-शरीर के बल से नहीं। (जीवं जीवेण चिट्ठइ ) इसी બિલકુલ હાસ થઈ ગયો હતો તેથી તેઓ અતિશય દુર્બળ થઈ ગયા હતા. ( धमणिसतए ) तमना मांस २डित शमांथा तेमनी नसे! २५ माती હતી કઠિનમાં કઠિન તપસ્યાને કારણે તેમના શરીરની જે એવી હાલત થઈ ગઈ હતી, તે એવા શરીરે તેઓ ઉત્થાન આદિ કિયાઓ કેવી રીતે કરતા डशे ? तो 24 साना निवा२९ भाटे सूत्रा२ ४ छ -( जीवं जीवेण गच्छइ ) जीव जीवेन गच्छति ! तेसो शरीना थी यासता नहीं ५५५ તેમના આત્મબળથી જ ચાલતા હતા અહીં પહેલે (જીવ) શબ્દ આત્માને વાચક છે અને બીજે (જીવ) શબ્દ શારીરિક બળને વાચક છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તેઓ આત્મબળથી જ ગમનાદિ ક્રિયા કરતા હતા, શારીરિક બળથી નહી. શારીરિક બળ ન હોવા છતાં તેઓ આત્મબળથી જ ચલનાદિ जिया ४२ता ता. (जीवं जीवेण चिट्टइ ) से प्रमाणे तेसो मामयी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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