________________
६७६
भगवतीसूत्रे "अणुपालेइ" अनुपालयति-पतिमासमाप्तौ तदनुमोदऽनात् । किमुक्तं भवति ? " आणाए आराहेइ" आज्ञया भावदाज्ञानुसारेण आराधयति । “सम्मं कारण फासित्ता" सम्यक् कायेन स्पृष्ट्वा 'जाव आराहेत्ता" यावत् आराध्य, अत्र यावत्पदेन-" पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता पूरित्ता किट्टित्ता अणुपालित्ता आणाए" इति छाया-पालयित्वा शोधयित्वा ( शोभयित्वो तोरयित्वा पूरयित्वा कीर्तयित्वा अनुपालयिता आज्ञया ) इति संग्रहः ।
स्कन्दकोऽनगारो मासिकी भिक्षुपतिमां सविधि समागध्य “जेणेव समणे भगवं महावीरे ” यौव श्रमगो भगवान् महावीरः “ तेणेव उवागच्छइ " तौ. प्रतिमा में अच्छी तरह से आराधित हुआ है अतः मैं प्रतिमा को अच्छी तरह से पालित कर चुका हूं इस प्रकार से उसका कीर्तन करते । (अणुपालेइ ) प्रतिमा की समाप्ति होने पर भी वे उसकी अनुमोदना किया करते । इस तरह उन स्कन्दक अनगारने उस पहिली भिक्षु प्रतिमा का (आणाए आराहेइ) प्रभु की आज्ञा के अनुसार आराधन किया। ( सम्मं कारण पासित्ता) इस प्रकार वे स्कन्दक अनगार प्रथम भिक्षु प्रतिमा का अपने शरीर से स्पर्श करके (जाव आरहेत्ता) यावन् उसका सविधि आराधन करके यावत्शब्द से “ पालित्ता, सोहित्ता, तीरित्ता, पूरित्ता, किट्टित्ता अणुपालित्ता आणाए” इस पाठ का यहां संग्रह किया गया है-इन पदों का अर्थ-पालन करके, शोधित या शोभित करके, तोरित करके, पूरित करके, कीर्तित करके, अणुपालीत करके, आज्ञा से आराधित करके (जेणेव समणे भगवं महावीरे) जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे ( तेणेव उवागच्छइ) वहां पर आये। હતા, અને મેં આ ભિક્ષુપ્રતિમામાં તે અભિમહનું સારી રીતે પાલન કર્યું છે, તે કારણે ભિક્ષુપ્રતિમાનું બરાબર પાલન કર્યું છે, એ પ્રમાણે તેનું કીર્તન राशन : “ अणुपालेह" भिक्षुप्रतिभानी समाति यया पछी ५ तेस। તેની અનુમોદના કર્યા કરતા. આ પ્રમાણે સ્કન્દક અણગારે પહેલી ભિક્ષુ प्रतिमान “ आणाए आराहेइ' प्रमुनी माज्ञा अनुसार २।२।५न यु. " सम्मं कारण पासित्ता " २ ते ५७सी भिक्षुप्रतिमान पातानी माथी ५२।१२ माराधन रीने “ जात्र आराहेत्ता” तेनुं पासन रीन, तेने शोधित અથવા શોભિત કરીને, તરિત કરીને, પૂરિત કરીને, કીર્તિત કરીને, અનુ पालित उशन मन लगवाननी माज्ञानुसा२ माराधन रीने “ जेणेव समणे. भगव' महावीरे " wii श्रम लगवान महावीर भिराभान उता, " तेणेव.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨