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________________ प्रमैयवन्द्रिका टीका श० २ उ०१ सू० १४ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६७५ 'सोहेइ' शोधयति-अतिचारपङ्कप्रक्षालनात् , यद्वा ' शोभयति' इति-छायायां पारणदिने गुर्वा दिदत्तावशिष्ट मोननात् । 'तीरेइ' तीरयति-पूर्णेऽपि तदवधौ स्वल्पकालोवस्थानात् — पूरेइ' पूरयति-पूर्णेऽपि तदवधौ तत्कृतपरिमाणपूरणात् । 'किट्ट' कोत पति-पारणादिने "अयमयं चाभिग्रहविशेषः कृत आसीत् , अस्यां प्रतिमायां स चाराधित एव, अधुना पारितप्रतिमोऽहम् , इति गुरुसमक्षं कीर्तनात् । उपयोग पूर्वक उसमें तत्पर रहने के कारण उन्हो ने उसका अच्छी तरह से पालन किया । (सोहेइ) इसमें किसी भी प्रकार से अतिचार रूप पङ्क मैल न लग जाय इस बात का सदा ध्यान रखने के कारण अथवा लगे हुए अतिचाररूप पङ्क (कीचड) के प्रक्षालन करने के कारण उन्हों ने उसे शोधित किया। अथवा (सोहेइ ) की छाया (शोभयति ) ऐसी भी हो सकती है सो इस पक्ष में इसका अर्थ ऐसा होता है कि पारणा के दिन गुरु आदि द्वारा दिये गये अवशिष्ट भोजन करने से उसको उन्होंने शोभायुक्त किया। 'तीरेइ' उसकी अवधि समाप्त हो जाने पर भी वे उसे थोडे समय तक और भी पालन करते रहते इस कारण मानों वे उसे उन्होंने तोरयुक्त किया अर्थात् समाप्त किया। 'पूरेइ' उसकी अवधि समाप्त हो जाने पर भी उस संबंधी कार्यों के परिमाण की वे पूर्ति करते रहते इस कारण उन्हों उसे पूरा किया। 'किटेइ' जब पारणा करने का दिन आता तब वे गुरु के समक्ष जाकर ऐसा कहते कि मैंने ऐसा अभिप्रह लिया था और वह मेरा अभिग्रह इस ४।२ तेमणे सारी शते तेनुं पालन यु. “ सोहेय " ते ४ ५ प्रा२ना અતિચાર (દેષ) રૂપ મેલ લાગી ન જાય તેની કાળજી રાખવાને કારણે અથવા જે અતિચારરૂપ મેલ લાગ્યું હોય તેને સાફ કરવાને કારણે તેમણે तेने शापित यु-शुद्ध यु:. मथा-" सोहेइ "नी छाया “शोमयति" ५५ થઈ શકે છે. જે એ દૃષ્ટિએ તેના અર્થને વિચાર કરવામાં આવે તે તેને અર્થ આ પ્રમાણે પણ ઘટાવી શકાય કે પારણને દિવસે ગુરુ વગેરે મારફત અપાયેલું વધેલું ભજન કરવાથી તેમણે તપસ્યાની શોભામાં અભિવૃદ્ધિ કરી. " तीरेइ ” तपनी समयमा। पूरी थया पछी ५४ था। समय सुधी તેમણે તેનું પાલન કર્યા કર્યું. તે કારણે જાણે કે તેઓ તેને તરી ગયા એટલે तेभो भिक्षुप्रतिभाने समास ४२१. ( पूरेइ) त५नी अवधि पू ५४ ॥ છતાં પણ તપસ્યા સંબંધી કાર્યોના પરિમાણની તેઓ પતિ કરતા રહ્યા, તે ४॥२२ तेभर ते पूरी ४१, (किटेइ ) यारे पा२याने दिवस माव्यो त्यारे તેમણે ગુરુની પાસે જઈને એવું કહ્યું કે મેં આ પ્રકારને અભિગ્રહ લીધે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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