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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २७० १ सू० १४ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६७७ वोपागच्छति " उवागच्छित्ता" उपागत्य “समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता " श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा " एवं वयासी" एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत्-'इच्छामि णं भंते " इच्छामि खलु हे भदंत ! “ तुब्भेहिं अब्भणुणाए समाणे" युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् " दोमासियं भिक्खुपडिमं उपसंपज्जित्ता विहरित्तए" द्वैमासिकी भिक्षुपतिमामुपसंपद्य खलु विहर्तुम् भवदाज्ञया द्वैमासिकी भिक्षुपतिमां स्वीकर्तुमिच्छामीति भावः, ततो भगवान्-अआदीत् "अहासुहं देवाणुप्पिया " यथासुखं देवानुपिय ! " मा पडिवंधं करेह " मा प्रतिवन्धं कुरु शुभकार्ये विलम्बो न करणीय इति भावः "तं चेव” तदेव-मासिकी भिक्षुपतिमावदेव-सर्वोऽविपाठोऽध्येतव्यः । (उवागच्छित्ता) वहां आकर उन्हों ने (समणं भगवं महावीरं वंदर नमंसइ) श्रमण भगवान महावीर को वंदन किया उन्हें नमस्कार किया। (वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके फिर उन्हों ने प्रभु से ( एवं वयासी) इस प्रकार कहा-(इच्छामि णं भंते !) हे भदन्त ! मैं चाहता हूं कि (तुम्भेहिं अभणुण्णाए समाणे) मैं आप से आज्ञा प्राप्त कर (दो मासीयं भिक्खुपडिमं उपसंपजित्ता णं विहरित्तए) दो मास की अवधिवाली भिक्षुप्रतिमा का पालन करूँ। तब भगवान ने उनसे कहा-( अहासुहं देवाणु प्पिया मा पडियंधं करेह ) हे देवानुप्रिय! तुम्हें जैसा रुचे वैसा करो-शुमकार्य में विलम्ब मत करो। (तंचेव ) इस द्वितीय भिक्षुप्रतिमा के संबंध में भी प्रथम भिक्षु प्रतिमा की तरह समस्त पाठ लगा लेना चाहिये । यहाँ पर जो विशेषता है वह इस प्रकार से है-कि जिस प्रकार से प्रथम भिक्षु प्रतिमा में अन्न-आहार उवागच्छइ" त्या या. " उवागच्छिता" त्यो भने तमाणे “ समण भगवं महावीर वंदइ नमसइ” श्रम लगवान महावीरने बहन नम॥२ अया. "वंदित्ता नमंसित्ता" वहन नभ२४१२ रीने तेभो तभने “ एवं वयासी') मा प्रमाणे ४ह्यु-" इच्छामि ण भंते !" 3 भगवन्! भारी की छ। छ । " हमेहि अभणुण्णाए समाणे " मायनी माज्ञा डाय तो दो मासियंभिक्खुपडिमं उपसंपज्जित्ताण विहरित्तए” में भासनी मधिवाजी लिपति. भानी माराधना ४३. त्यारे मापाने २४४४ २मारने धु-'' अहासुहं देव. णुप्पिया मा पडिबध करेह " हैवानुप्रिय ! तमनरेभ सु५ प तेम
शे शुभ योभा nि ४२३ नही. "त चेव " 241 भी भिक्षुपतिमाना વિષયમાં પણ તમામ સૂત્ર પાઠ પહેલી ભિક્ષુપ્રતિમા પ્રમાણે જ સમજી લે. પણ તેમાં આ પ્રમાણે વિશેષતા છે–પહેલી ભિક્ષુપ્રતિમામાં દરરોજ આહાર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨