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________________ प्रमेयचकाटीका श० १ ४०६ सू० ४ लोकालोकादिपूर्वपश्चात्वे रोहानगारप्र० ५५ 'सामया भावा' शाश्वत भावौ 'अणाणुपुव्वी एसा रोहा ' अनानुपूर्व्येषा रोह ! हे रोह ! लोकान्तश्च सप्तममवकाशान्तरं च पूर्वमपि पश्चादपि । एतयोर्नियताऽऽनुपूaf नास्ति किन्तु आनुपूर्वीरहिते एते द्वे, पूर्वपश्वाद्रूपः क्रमो न भवतीति । सप्तममवकाशान्तरमिति सप्तमपृथिव्या अधोवर्त्ति आकाशमिति । ' एवं लोयंते य सत्तमे य तणुवाए' एवं लोकान्तश्च सप्तमश्च तनुवातः । ' एवं घणवाए' एवं घनवातः, 'घणोदही' घनोदधिः 'सत्तमा पुढवो' सप्तमी पृथिवी एवं लोयंते एक्केक्केणं संजोए इमेहिं ठाणेहिं एवं लोकान्त एकैकेन संयोजयितव्य एभिः वक्ष्यमाण गाथोक्तैश्चतुर्विंशतिसंख्यकैः स्थानैः 'तं जहा ' तद्यथा तदेव गाथाद्वयेन दर्शयति- 'उवास' इत्यादि । 'उवास' इति अवकाशः, अत्र पदैकदेशे पदसमुदायग्रलोकान्त और सातवां अवकाशान्तर ये दोनों हैं। इनमें पहिले अमुक है और बाद में अमुक है ऐसा पूर्व पश्चात् क्रम नहीं है । ( दो वि एए सासया भावा ) ये दोनों ही शाश्वतभाव हैं। (अणाणुपुव्वी एसा रोहा ! हे रोह ! लोकान्त, और सातवां अवकाशान्तर ये दोनों पहिले भी हैं और बाद में भी है। इनमें नियत आनुपूर्वी नहीं है । किन्तु ये दोनों आनुपूर्वी से रहित हैं अतः इनमें पूर्वपश्चत् रूप क्रम नहीं है। सप्तम पृथ्वी के नीचे रहा हुआ जो आकाश है उसका नाम सप्तम अवकाशान्तर है । ( एवं लोयंते य सत्तमे य तणुवाए, एवं घणवाए, घणोदही, सत्तमा पुढवी, एवं लोयंते एक्केक्केणं संजोएयव्वे इमेहि ठाणेहिं ) इसी तरहसे लोकान्त और सातवां तनुवात, तथा इसी तरहसे घनवात घनोदधि और सातवीं पृथिवी, इस तरह इन "" उवासवाय० इत्यादि दो गाथाओं में कहे हुए चोईस २४ स्थानों में से प्रत्येक स्थान के लोकान्त को जोड़ना चाहिये । गाथामें कहे हुए २४ स्थान ये हैं- ( उवास ) લેાકાન્ત અને સાતમું અવકાશાન્તર અને છે. તેમાં પહેલુ અમુક અને પછી अछे सेवा पूर्वापरो उभ होतो नथी. “दो वि एए साखए भावे " मे जन्ने शाश्वत भाव छे. “अणाणुपुब्बी: एसा रोहा ! " हे रोड ! सोअन्त भने सातभु એ અન્ને પહેલાં પણ છે અને પછી પણ છે. તે બન્ને આનુપૂર્વીથી રહિત છે તેથી તેમાં પૂર્વાપરના ક્રમના અભાવ છે. સાતમી पृथ्वीनी नीचे रहेला भाशने सात अवशान्तर उडेछे " एव ं लोयंते य सत्तमे य तणुत्राए, एवं घणवाए, घणोदही, सत्तमा पुढवी, एवं लोयते एक्केकेणं संजोयव्वे इमेहि ठाणेहिं” मे४ प्रमाणे बोअन्त भने सातभुं तनुवात, तथा એજ રીતે ધનવાત નાદિષ્ટ અને સાતમી પૃથ્વી, તથા એવી જ રીતે આ ગાથામાં કહેલાં ૨૪ સ્થાનેામાંના પ્રત્યેક સ્થાનની સાથે લેાકાન્તને યાજીને આલાयो मनाववा लेह मे. गाथमां हर्शावेिसां २४ स्थाना मा प्रमाणे छे- “उवास” 66 અવકાશાન્તર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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