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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ० १ ० १५ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६५७ मन्ति के सामायिकादीनि एकादशांगानि अधीते अधीत्य यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् इच्छामि खल भदंत ! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् मासिकी भिक्षुप्रतिमामुपसंपद्य विहर्तुम् । यथासुखं देवानुपिय ! मा प्रतिबन्धं करने लगे। (तएणं से खदए अणगारे ) इसके पश्चात् वे स्कन्दक अनगार ( समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान महावीर के (तहारूवाणं थेराणं अंतिए ) तथारूप स्थविरों के पास (सामाइयमाझ्याई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ ) सामायिक आदि ग्यारह अङ्गों का अध्ययन करने लगे। ( अहिजिजत्ता) अध्ययन कर के फिर वे (जेणेव समणे भगवं महाविरे तेणेव उवागच्छइ ) जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां आये ( उवागच्छित्ता) आ करके (समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ) उसने अमण भगवान् महावीर को वंदना की और नमस्कार किया ( वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी ) वंदना नमस्कार करके वे उनसे इस प्रकार कहने लगे (इच्छा मि णं भंते ! तुम्भेहिं अभणुण्णाए समाणे मासियं भिक्खुपडिम उवसं पज्जित्ता णं विहरित्तए ) हे भदन्त ! जो आप आज्ञा प्रदान करें तो मैं मासिक भिक्षु प्रतिमा को स्वीकार करके-विचरू । ( अहासुहं देवाणुप्पिया) भगवान महावीरने तब उनसे कहा हे देवानुप्रिय ! तुम्हें जिस प्रकार से सुख हो वैसा करो। ( मा पडिबंध करेह ) विलम्ब मत करो।
त्यारे २४४२ मारे ( समणस भगवओ महावीरस्स ) श्रम समपान मडावी२ना (तहारूवाणं थेरोणं अतिर ) तथा प्रा२ना स्थविशनी पासे (सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगई अहिज्जइ) सामायि वगेरे भगिया२ भानु मध्ययन ४यु ( अहि ज्जित्ता) अध्ययन रीने (जेणेव समण भगव महावीरे तेणेव उवागच्छ) «य श्रमाय भावान भवी२ मित! त त्यो गया. (उवागच्छित्ता) त्यां ने (समणं भगव महावीर वंदइ नमसइ) तेमणे श्रम समपान मडावीर न नम२४॥२ ४ा. (वंदित्ता नमंसित्ताएवं वयासी) पहन नभ२४१२ ४रीन तेमणे मानने 241 प्रमाणे ह्यु ( इच्छामि णं भंते ! तुभेहिं अब्भण्णाए समाणे मासिय भिक्खुपडिम उवसंपज्जित्तो गं विहरित्तए) डे मावन् ! ने मापनी मा य त भडिनानी भिक्षुप्रतिभा २५00१२ ४शन वियरवानी भारी ४२७छ. ( अहासुह देवाणुप्पिया ) त्यारे महावीर मावाने तेभने . तभने म सुम ५२ तम
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨