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________________ shraft टीका श०२ ३० १ सू० १३ स्कन्दकचरित निरूपणम् , प्रमार्जनपूर्वकं पार्श्वपरिवर्त्तनं करोति 'तह भुंजइ' तथा भुङ्क्ते = अङ्गारधूमादिदोष वर्जनेनाहारादि करोति । ' तह भास तथा भावते सावद्यपरिवर्जनेन भाषा समित्या वदति, ' तह उट्ठाए उट्ठाय ' तथोत्थायोत्थाय = तथा = निद्राप्रमादवर्जनेन उत्थया उत्थाय आत्मशक्त्या पूर्णरूपेण सावधानीभूयेत्यर्थः 'पाणेहिं भूएहिं जीवेडिं सत्तेहि ' प्राणेषु भूतेषु जीवेषु सत्वेषु = प्राणादिषु ' संजमेणं ' संयमेन = रक्षणरूपेण ' संजमे संयमयति यतते जीवरक्षायां यतनावान् भवति इत्यर्थः 'अस्सि चणं अट्ठे णो पमायइ ' अस्मिथ खलु अर्थे संयमपालनरूपे नो प्रमाद्यति = प्रमादं न करोतीति । ' तरणं से खंदए कच्चायणस्स गोत्ते' ततः खलु स रुकन्दकः कात्यायनगोत्र: 'अणगारे जाए' अनगारो जातः भगवत उपदेशं श्रुत्वा भगवत्प्रतिपादित श्रुतचारित्रादि धर्ममाचरन् द्रव्यतो भावतश्वानगारोऽभवदिति भावः । करवट बदल ने पहिले वे उस करबट और स्थान का प्रमार्जन कर लेते तब कहीं वे करवट बदलते - ( तह भुंजइ ) अङ्गारदोष और धूमादिदोष से वर्जित वे आहार आदि कर ने लगें ।' तह भासह' सावध - वचन का परिहार करके अब वे भाषा समिति के अनुसार बोल ने लगे 'तह उट्ठाए उद्वाय' तथा अपनी आत्मशक्ति से उठ कर प्रमाद निद्राका त्याग करके सोच समझ कर अर्थात् पूर्णरूप से सावधान होकर - 'पाणेहिं, भूएहिं जीवेहिं, सत्तेहिं प्राणों में, भूतों में, जीवों में और सत्वों में 'संजमेणं' उनके रक्षण रूप संयम से प्रवृत्ति करने लगे अर्थात् जीवों की रक्षा करने में वे यतनावान् बन गये । ' अस्सि चणं अणो पमाय' इस अर्थ में-संयम पालन रूप जिन कर्तव्य में वे थोडा सा भी प्रमाद नहीं करते । 'तरणं से खंदए- कच्चायणस गोते' इस घडयानु' प्रभार्थन ( चूक सेवानी डिया ) उरता हता. ( तह भुंजइ ) भगવાનની આજ્ઞાનુસાર નિર્દોષ-પ્રાસુક-અહાર ગ્રહણ કરવા લાગ્યા એટલે કે मगार होष भने धूमाहि होषथी रहित आहार थडलु ४२वा साग्या. ( तह भासइ) सावध वयननो त्याग पुरीने निर्बंध ( दोष रहित ) वयन मोसवा साग्या.-भाषासमितिनुं पासून ४२वा साग्या ( तह उठाए उट्ठाय ) तथा पोतानी ग्यात्मशस्तिथी छीने-प्रभा निद्रानो त्याग रीने, सावधानी पूर्व ( पाणेहिं, भूपहिं जीवेहि, सत्तेहि, संजमेणं ) आयु, भूत, व अने सत्वानी रक्षा थाय वी રીતે વવા લાગ્યા. એટલે કે તેએ યતના પૂર્ણાંક જીવાની રક્ષા કરવા લાગ્યા. अस्सि चणं अट्ठे णो पमायइ ) मा अर्थमा ( सयभनु पालन ४२वा ३५ પોતાના કર્તવ્યમાં) તેએ બિલકુલ પ્રમાદ उरता नहीं. (तएण से खंदए कच्चायणस्स गोते ) मा रीते अत्यायन गोत्री २४ साया अर्थमा भार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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