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भगवती सूत्रे
णस्य भगवतो महावीरस्य ' इमं एयारूवं ' इममेतद्रूपम् ' धम्मियं धार्मिकम् धर्मप्रधानकं चारित्रपालनरूपम् ' उबएस उपदेशं ' सम्मं संपडिवज्जइ' सम्यक्र संप्रतिपद्यते संयमं स्वीकरोतीत्यर्थः । अथासौ स्कन्दकः ततः किंकरोतीत्याह4 तमाणाए ' इत्यादि । ' तमागाए ' तदाज्ञया = भगवदाज्ञया 'तह गच्छ३ ' तथा गच्छति तथा = ईर्यासमित्या गच्छति = गमनागमनं करोति, 'तह चिह्न ' तथा तिष्ठति, संयमात्ममवचनविराधनापरिहारेण तिष्ठति ' तह निसीयई ' तथा निषीदति भूमिप्रमार्जनपूर्वकमुपविशति ' तह तुयहड़ ' तथा त्वग्वर्त्तयति= एयारूवं ) श्रमण भगवान महावीर के इस प्रकार के (धम्मियं ) धार्मिक - धर्मप्रधान - चरित्र पालनरूप ( उवएस) उपदेश को (सम्मं पडिवज्जइ) अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया अर्थात् संयम को धारण कर लिया ।
अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि संयम को अंगीकार करने के याद स्कन्दक ने क्या किया - ( तमाणाए तह गच्छइ ) अब वे स्कन्दक अनगार प्रभु की आज्ञा के अनुसार ( तह गच्छ ) ईर्यासमिति से गमनागमन करने लगे । (तह चिठ्ठइ ) संयम में अपने में तथा प्रवचन में जिस तरह विराधना न हो इस प्रकार से वे खडे रहने लगे । ( तह निसीयई ) प्रभु ने बैठने के लिये जैसा उन्हें समझाया था उस माफिक अब वे बैठने लगे अर्थात् बैठ ने की भूमिका पहिले प्रमार्जन कर लेते बाद में वहां बैठते ( तह तुयहह ) स्वग्वर्तन - करबट के बदल ने के समय में साधु को क्या करके करवट बदलना चाहिये इस विषय में जैसा प्रभु ने स्कन्दक को उपदेश दिया था वे उस मार्ग के अनुसार यतनापूर्वक अपना पार्श्वपरिवर्तन - करवट बदलना करने लगे अर्थात् श्रमण भगवान भड्डावीरना ते अहारना ( धम्मियं ) धार्मि- यारित्र पावन३५ ( उवएसं ) उपदेशना ( सम्म पडिवज्जइ ) धणी सारी रीते स्वीमरी सीधे એટલે કે સયમ ધારણ કર્યાં અને નિય ́થ ધર્મનું યથેાક્ત રીતે પાલન કરવા માંડયું. હવે સૂત્રકાર એ બતાવે છે કે સયમ અંગીકાર કર્યા પછી *ન્દક અણુગારે शु यु ? ( तमाणाए तह गच्छइ ) हवे ते २४६४ प्रभुनी आज्ञानुसार धर्यासभितिनुं पासन उरीने अवर ४१२ १२वा साज्या ( तह चिट्ठइ ) सयभभां तथा प्रवयनमा विराधना न थाय ते रीते उला रहेवा साग्या. ( तह निसीयई ) મેસતી વખતે કેવી રીતે બેસવું, એ ખામતમાં પ્રભુએ જે આજ્ઞા આપી હતી તે પ્રમાણે હવે પ્રમાના કરીને (રજોહરણથી બેસવાની જગ્યા સાક્ मुरीने) यतना धूर्व४ मेसवा लाग्या (तहतुयट्टइ) अलुनी आज्ञानुसार यतनापूर्व પડખું ફેરવવા લાગ્ય એટલે કે પડખુ ફેરવતાં પહેલાં તે જગ્યાનું તથા તે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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