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________________ ६३८ भगवतीसूत्रे स्वग्वर्तितव्यम्-प्रमार्जनपूर्वकमेव पार्श्वपरिवर्तनं कर्तव्यम् । एवं भुंजियवं ' एवं भोक्तव्यम् अङ्गारधूमादिदोषवर्जितमाहारादि भोक्तव्यमिति भावः ‘एवं भासियव्वं ' एवं भाषितव्यम्-सावद्यभाषा परिवजनेन भाषासमित्या वक्तव्यम् । 'एवं उठाए उहाय' एवमुत्थयोत्थाय एवम् प्रमादनिद्रानिराकरणेन उत्थया आत्मशक्त्या उत्थाय ‘पाणेहिं भूएहिं जीवेहि सत्तेहिं ' प्राणेषु भूतेषु जीवेषु सत्त्वेषु एकेन्द्रियादारभ्य पञ्चेन्द्रियपर्यन्तेषु तत्र प्राणाः द्वि त्रि चतुरिन्द्वियास्तेषु तथा भूताः वनस्पतयस्तेषु, जीवाः पञ्चेन्द्रियास्तेषु सत्त्वाः पृथिव्यपूतेजो वायव. स्तेषु ' संजमेणं ' संयमेन तद्रक्षणेन संजमियव्यं' संयन्तव्यम्=यतितव्यम् यथा र्जित करले, पश्चात् वहां बैठे । ( एवं तुयट्टियव्वं ) सोते समय उसे इस बात की सावधानी रखनी चाहिये कि यदि वह करवट बदलता है तो उसे पहिले उस स्थान को और अपने पार्श्वभाग को प्रमार्जिका आदि से प्रमार्जित कर लेना चाहिये, तब जाकर वह करवट बदले । (एवं भुंजियव्वं ) इस प्रकार से भोजन करना चाहिये अर्थात् आहार संबंधी दोषों को टालकर एवं अंगार धूम वगैरह दोषों को दूर कर मुनि को शुद्ध आहार करना चाहिये । (एवं भासियवं) बोलते समय भाषा समिति के अनुसार ही बोलना चाहिये। साधु को सावद्यभाषा का परिहार सदा करना चाहिये-हित, मित, वचन ही बोलना चाहिये। (एवं उठाए उठाय) अपनी आत्माशक्ति से उठकर-अर्थात्प्रमाद, निद्रा का त्याग पूर्वक सावधान होकर-विवेक युक्त होकर (पाणेहिं, भूएहि, जीवेटिं, सत्तेहिं) श्रमण निम्रन्थ का कर्तव्य है कि वह प्राण, भूत, जीव और सत्वों की यतना से सदा रक्षा करता रहे। यही बात ( संजमेणं संजमियव्वं ) सूत्रपाठ स, ( एवं तुयट्टियव्व) ५७४ मसती मते ५५भुनिये सावधानी રાખવી જોઈએ-સૂતી વખતે પડખું બદલવાની જરૂર પડે ત્યારે મુનિએ જે બાજુ પડખું બદલવું હોય તે ભાગને રજોહરણથી સાફ કરીને પડખું ફેરવવું स, ( एवं भुजियव्व) प्रमाणे मान ४२ नो भूनिये निष આહાર ગ્રહણ કરવો જોઈએ–આહાર સંબધી દેશે રાખીને આહાર લે नस (एवं भासिय) मारता १ते भाषा समिति, पास ४२j જોઈએ. સાધુએ સાવદ્ય (દેષ યુક્ત) ભાષાને સદા પરિત્યાગ કરે જઈએ હિત, મિત વચને જ બોલવા જોઈએ. ( एवं उदाए उदाय ) पोतानी मात्म शतिथी हीन-मेटले प्रभाह तथा निद्राना त्याग ४शन, साक्येती पूर्व-विवेयुक्त ने (पाणेहि, भएहि, जोवेहि, सत्तेहिं) मुनिये प्राण, भूत, १ मने सत्त्वानी यतन। ya' २क्षा ४२वी स. से वात (संजमेणं संजमियव्व) ॥ सूत्र ४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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