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________________ ६३० भगवती सूत्रे प्रज्वलद् गृहान्निष्कासितं सत् 'पच्छापुरायए' पश्चात् पुरा च तत्र पश्चात् आगामिनि काले पुरा च = पूर्वमिदानीमेव "हियाए" हिताय = उपकाराय " सुहाए" सुखाय सुखोत्पादनाय ' खेमाए' क्षेमाय कल्याणाय ' निस्सेयसाए ' निःश्रेयसाय = अभ्युदयाय ' आणुगामियत्ताए' आनुगामिकतायै भाविवंशपरम्परोपयोगाय 'भविस्स ' भविष्यति एवं विचार्य गृहपतिः प्रज्वलद्गृहात् स्वल्पभारं बहुमूल्यं मणिगणादिवस्तुजातमादाय सुरक्षितस्थाने गत्वा निवसतीति भावः । दृष्टान्तं मद दान्तिकमाह ' एवामेव ' इत्यादि एवामेव देवाणुपिया एवमेव देवानुमियः हे देवानुप्रिय ! भगवन् ! यथा तस्य गृहपतेस्तादृशमल्पभारं बहुमूल्य वस्तु रक्षितं सत् दिताद्यर्थं भविष्यतीति विचारो भवति, विचार्य्यं तद्रहुए घर से निकाली गई यह अल्पभारवाली कीमती वस्तु (पच्छापुराए) आगामी काल में और इस समय में "हियाए" यह उपकारक हो रही है, इसी तरह से ( सुहाए) सुख के लिये, (खेमाए) कल्याण के लिये ( निस्सेयसाए) भाग्योदय के लिये ( आणुगामियत्ताए ) भावी वंश परम्परा के उपभोग के लिये (भविस्सइ ) होगी इस प्रकार विचार कर वह गृहस्थ जलते हुए अपने घर से स्वल्पभारवाली कीमती वस्तु - रत्न मणिक्यादि को लेकर के सुरक्षित स्थान में जाकर रहने लगता है। इस प्रकार दृष्टान्त प्रदर्शित कर इस का समन्वय अब वह दाष्टन्ति के साथ करते हुए कहते हैं कि - ( एवामेव ) इसी तरह से ( देवाणुपिया) हे देवानुप्रिय ! भगवन्- जिस प्रकार से उस गृहपति का यह अल्पभारवाली कीमती वस्तु रक्षित होती हुई हितादिक के साधन के लिये है (ऐसा विचार होता है और ऐसा विचार कर ही वह उसके थे।छा वजननी यागु लारे भूयनी वस्तुओ ( पच्छा पुराए ) हवे पछीना anuni na (feug) (gakles, (yerg) yuzles, (àmg) KEULY ४२४, ( निस्से साए ) भने लाग्योदय (२४ मनशे, ( आणुगामियत्ताए ) भने भारी लावी पेढीने भाटे पशु उपयोगी ( भविस्सइ ) थर्ध पडशे. या रीते વિચાર કરીને, તે ગૃહસ્થ પેાતાના સળગતા મકાનમાંથી ઘણા ઓછા વજનની પણ કીમતી વસ્તુએ ( રત્ન, મણિ વગેરે ) લઇતે સુરક્ષિત સ્થાનમાં જઈને રહે છે. આ પ્રમાણે દૃષ્ટાંત આપીને હવે સ્કન્દક પોતાની સરખામણી પણ તે गृहस्थनी साथै रतां उडे छे उ ( एवामेव ) ०४ प्रमाणे ( देवाणुपिया ) હે દેવાણપ્રિય મારી પાસે પણ આત્મારૂપી રત્ન મેાજુદ છે. જેવી રીતે પેલા ગૃહસ્થે એવા વિચાર કર્યો કે આછા ભાર વાળી પણ કીમતી વસ્તુને જે સળગતા ઘરમાંથી બહાર કાઢી લેવામાં આવશે તે તે પેાતાને માટે ઉપયાગી, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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