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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६२१ भंते " श्रद्धे इदं यथार्थमेवास्तीति विश्वसिमि० खलु भदंत ! “णिग्गंयं पाव. यणं" निग्रंथ प्रवचनम् निग्रंथसंबन्धिशास्त्रे मे श्रद्धा समुत्पन्ना यस्य शास्त्रस्यानुगामी भवत्सदृशः केवली तत् शास्त्रमवश्यमेवोपादेयमित्याकारिका मे श्रद्धा समुत्पन्नाऽतोहं श्रद्धे प्रवचन मितिभावः । " पत्तियामि णं भंते निग्गंथं पावयणं " प्रत्येमि खलु भदन्त ! निग्रंथं प्रवचनम् , लोकादि स्वरूपमित्थमेवेति प्रीति प्रत्ययं विश्वास वा करोमि "रोएमि णं भंते णिग्गंथं पावयणं " रोचे खलु भदंत । नैर्ग्रथं प्रवचनम् रोचे पीयूषधारावत् वांछामि निग्रंथप्रवचनम् “ अब्भुटेमि णं भते णिग्गंथं पावयणं " अभ्युत्तिष्ठामि खलु भदंत ! नैर्मथं प्रवचनम् अभ्युत्तिष्ठामि । अङ्गीकभगवान महावीर से इस प्रकार कहा-(सदहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं ) हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही यथार्थ है-इस कारण मैं इस पर श्रद्धा करता हूं। श्रद्धा करने का कारण यह है कि आप जैसे केवली इसकी प्ररूपणा करने वाले हैं अतः यह अवश्य ही उपादेय है, इस प्रकार की श्रद्धा मुझे उत्पन्न हो गई है अतः मैं इस निग्रन्थ प्रवचन के ऊपर अटूट श्रद्धा वाला बन गया हूं। (पत्तियामि णं भंते ! निग्रन्थ पावयणं) हे भदन्त ! लोकादिक का स्वरूप जैसा ओपने प्रतिपादित किया है वह ऐसा ही है इस प्रकार मैं इस निर्ग्रन्थ प्रवचन पर प्रीति-प्रत्यय -विश्वास करता हूं। (रोएमि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं) जिस प्रकार अमृत हरएक प्राणी की रुचि का एकान्तताविषयभूत बनता है उसी प्रकार से हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रतिपादित प्रवचन भी मेरी रुचि का विषयभूत बन गया है। (अब्भुटेमिण भंते ! णिग्गंथे पावयणं) इसलिये हे भदन्त !मैं आज से इस निर्ग्रन्थ प्रवचन को अंगीकार करता हूं, (एवमेयं भंते!) हे भदन्त ! आपने जो उपदेश दिया है वह ऐसा ही " सहामिण भंते ! णिग्गंथं पोवयण" मावान् ! म निथ प्रवચન જ યથાર્થ છે, તે કારણે મને તેમાં શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઈ છે. શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થવાનું મુખ્ય કારણ એ છે કે આપ જેવા કેવલી ભગવાન તેની પ્રરૂપણ કરનાર છે તેથી તે અવશ્ય ગ્રહણ કરવા એગ્ય છે એવી શ્રદ્ધા મારા મનમાં ઉત્પન્ન થઈ છે तेथी 21 नि प्रययनमा हुमतूट श्रद्धा युत मनी गये। छु. “ पत्तियामिण भंते ! निग्गिंथं पावयणं" है भगवान् ! सो वगैरेनुं २१३५ माघे પ્રતિપાદિત કર્યા પ્રમાણે જ છે એવી પ્રતીતિ મને થઈ ગઈ છે. તેથી નિગ્રંથ अवयन ५२ भारी प्रीति-विश्वास व्यत ४३ छु "रोएमि णं भंते! णिग्गंधपावयणं " म मभृत ४२४ सपने रुथि ४।२४ थ६ ५3 छ तेम २मा निय अवयन श्रवण ३२वानी भारी सथि ५६५ पचती on तय छ. “ अब्भदेमि गं भते ! णिग्गंथं पावयणं” तेथी 3 लगवान ! माथी हु म निथ प्रव શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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