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________________ ६२२ भगवतीस्त्रे मणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण” इति संग्रहः " हट्टतुट्टचित्तमाणदिए " हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः-हृष्टतुष्टम्=अतितुष्टम् , यद्वा हृष्टं हर्षितम् , तुष्टम् धर्मकथा श्रवणेन प्राप्तसन्तोषम् , तादृशं चित्तं यस्य स हृष्टतुष्टचित्तः, अतएव आनन्दितः= आनन्द प्राप्तः संजातमानसोल्लास इत्यर्थः “पीइमणे" प्रीतिमनाः-प्रीति: तृप्तिमनसि यस्य स प्रीतिमनाः अमृतोपमवाणीश्रवणेन तृप्तमानसः अतएच " परम सोमणस्सिए " परमसौमनस्थितः-परमम्-उत्कृष्टश्च तत् सौमनस्य प्रसन्नचित्तता चेति परमसौमनस्य, तदस्य संजात परमसौमस्यितः परमानुरागपूर्णमनस्कः । " हरिसवसविसप्पमाणहियए " हर्षवश विसर्पद् हृदयः हर्षवशेन विसर्पत्=परितः उच्छवत् हृदयं यस्य तथा भगवदुक्तधर्मश्रवणादमन्दानन्दतरङ्गसमुच्छालितचित्त इत्यर्थः “उहाए उट्टेइ” उत्थया उत्थानक्रियया उत्तिष्ठति, “ उद्वित्ता" उत्थाय “समणं भगव महावीर” श्रमणं भगावन्तं महावीरम्। तिक्खुतो विकृत्वः त्रिवारमित्यर्थः “ आयाहिणपयाहिणं करेइ ' आदक्षिणप्रदक्षिणां करोति " करित्ता" 'वंदइ नमसइ' वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नमंसित्ता” वन्दित्वा नमस्यित्वा' "एवं वयासी" एवम् वक्ष्यमाण वचनम्-अबादीत् उक्तवान् “ सद्दहामि गं वाणी के सुनने से तृप्त मन वाले हुए इसी से (परमसोमणस्सिए ) जिनका चित्त परम प्रसन्नता से भर गया है-अर्थात् परम अनुराग से पूर्ण मन वाले ऐसे वे स्कन्दक परिव्राजक उस समय अपार हर्ष के मारे प्रफुल्लित हुए उनका हृदय (हरिसवसविसप्पमाणहियए) भगवान द्वारा कथित धर्म के श्रवण से होने वाले हर्षोल्लास के उक्तर्ष से फूल गया। वह उसी समय (उद्याए उट्टेइ ) अपनी उत्थानशक्ति से उठे 'उद्वित्ता' और उठकर (समणं भगवं महावीरं ) उन्हों न भगवान महावीर को (तिक्खुत्तो) तीन बार (आयाहीणपयाहीणं करेइ करीत्ता बंदइ नमसइ) आदक्षिणप्रदक्षिणापूर्वक वन्दना नमस्कार करते है (वंदित्ता नमंसित्ता) वन्दना नमस्कार करके ( एवं वयासि ) फिर श्रमग मणस्सिए" प्रसन्नताथी मरागयु- मेटले मति माथी पूर्ण मनवाण २४.६४ परित्रानुं ड्य " हरिसवसविसप्पमाणहियए' मानना धीપદેશ સાંભળીને હર્ષોલ્લાસથી નાચી ઉઠયું. मे सभये “ उडाए उठेइ " ते घोतानी उत्थानशतिथी ४या. “ उद्वित्ता" मन हीन समण भगव' महावीर" मा श्रम मावान महावीरने “तिक्खत्तो” a वर "आयाहिणपयाहिण करेइ करित्ता वंदइ नमसह" माक्षि प्रदक्षिणपू१४ पन नम॥२ घ्या. " वंदित्ता नमंसित्ता एब वपासी" न नम२ ४शन तेमणे गवान महावीरने या प्रमाणे धु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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