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भगवतीसूत्रे व्यम् , एवं त्वम् वर्तितव्यम् , एवं भोक्तव्यम् , एवं भाषितव्यम् , एवमुत्थयो त्थाय प्राणेषु भूतेषु जीवेषु, सत्त्वेषु. संयमेन संयमितव्यम् , अस्मिंश्वार्थेन किंचिदपि प्रमादयितव्यम् , ततः खलु स स्कन्दकः कात्यायन गोत्रः श्रमणस्य भगवतो महा वीरस्य ममैतदूपं धार्मिकमुपदेशं सम्यक् संप्रतिपद्यते । तदाज्ञया तथा गच्छति,तथा से चलना चाहिये-( एवं चिट्ठियव्वं ) इस प्रकार से ठहरना चाहिये ( एवं निसिइयव्वं ) इस प्रकार से बैठना चाहिये ( एवं तुयटियव्वं ) इस तरह से करवट बदलना चाहिये । ( एवं भुजियव्वं ) इस प्रकार से आहार करना चाहिये ( एवं भासियव्वं ) इस प्रकार से बोलना चाहिये ( एवं उट्ठाए उट्ठाय ) आपनी आत्मशक्ति से उठकर-प्रमाद निद्रा का परित्याग कर सोच समझकर (पाणेहिं ) प्राणियों में, (भूएहिं ) भूतों में (जीवेहिं) जीवों में (सत्तेहिं ) सत्वों में ( संजमेणं संजमियव्वं ) संयम से प्रवृत्ति करनी चाहिये (अस्सिच णं अढे णो किंचि वि पमाइयव्वं ) इस विषय में थोड़ा सा भी प्रमाद नहीं करना चाहिये । (तएणं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयाख्वं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जइ ) इसके बाद कात्यायन गोत्रीय स्कन्दक ने श्रमणभगवान महावीर का यह इस प्रकार का धार्मिक उपदेश अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया ( तमाणाए ) श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा के अनुसार अब वे स्कन्दक मुनि चिद्वियव्व) २t प्रमाणे SAL २ नो , ( एवं निसीइयव्व) ॥ रीते मेसनेमे, ( एवं तुयट्ठियव्वं ) मा रीते ५७९ ३२५ नेम, ( एवं भुजियव्व) २ रीते माडा२ ४२वन , ( एवं भासियव्वं ) मा प्रमाणे मास नये, ( एवं उठाए उद्राय ) भावी शत पातानी मामशतिथी हीन-प्रमाह निद्रान। परित्यारीने सम वियारीने (पाणेहिं ) प्रमे। प्रत्ये, (भूएहिं ) भूतो, प्रत्ये, ( जीवेहिं) । प्रत्ये अने (सत्तेहि ) सत्या प्रत्ये (संजमेणंसंजमियव्वं ) सयमपूर्व४ वत' नये. तमारी प्रवृत्तिथी तभनी enel नहुमाय, तेमनी डिसा न थाय वगेरे ध्यानमा रामन, ( असि च णं अटे णो कंचि वि पमाइयव्व) 40 पासतमा २४२॥ ५७ प्रभार ४२व। नही. तरण से खदए कच्चायणस्सगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स इमं एयारूवं धम्मियं उवएसं सम्मं संपडिवज्जइ) त्यारे ते अत्यायन गोत्री २४ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને તે પ્રકારને ધર્મોપદેશ સારી રીતે ગ્રહણ કર્યો. (तमाणाए) श्रम भगवान महावीरनी मात्र प्रमाणे हवे ते २४४४ मुनि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨