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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६१५ स्वयमेवाचारगोचरं विनयवैनयिकचरणकरणयात्रामात्राप्रत्ययं धर्ममाख्यातुम् । ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः स्कंदकं कात्यायनगोत्रं स्वयमेव प्रव्राजयति यावत् धर्ममाख्याति एवं देवानुप्रिय ! गंतव्यम् , एवं स्थातव्यम् , एवं निषत्त. कि आप (सयमेव ) स्वयं ही (पव्वाविउ ) मुझे दीक्षा प्रदान करें। (सयमेव मुंडाविउं) आप स्वयं ही अपने हाथ से मुझे मुंडित करें (सयमेव सेहाविउ ) आप स्वयं ही मुझे प्रतिलेखनादि क्रिया सिखावें, (सयमेव सिक्खाविउं) आप स्वयं हो मुझे सूत्र और उनका अर्थ पढावें, तथा (सयमेव आयारगोयरं विणयवेणय चरणकरणजाया मायावत्तियं धम्ममाइक्विउं ) आप स्वयं ही मेरे लिये आचार ज्ञानादि पांच आचार और गोचर-भिक्षाचर्या का उपदेश करें तथा विनयवाले और विनयजन्य फल वाले चरण-व्रतादिचरणसत्तरी,
और करण-पिण्डविशुद्धयादि करण सत्तरी, यात्रा-संयमयात्रावाले और मात्रा-आहारादि की मात्रा वाले ऐसे धर्म का उपदेश देवें । (तएणं समणे भगवं महावीरे ) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर ने (खंदयं कच्चायणसगोत्तं सयमेव पवावेइ जाव धम्ममाइक्खइ ) कात्यायनगोत्रीय स्कन्दक को अपने हाथ से ही दीक्षित किया यावत् अपने आप ही उन्हें धर्म का उपदेश दिया-इसमें उन्होंने उन्हें समझाया कि ( एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं ) हे देवानुप्रिय ! इस प्रकार भारी ४-४! छे. (सयमेव मुंडाविउ) भा५ १ मापना थथी भने भुजित ४३।-दीक्षा प्रदान ४२, ( सयमेव सेहाविउ) मा५ ते १ भने प्रतिखेमना वगेरे घम लिया। शिमा, (सयमेव सिक्खाविउ ) मा५ पाते। भने सूत्री मने तमना लो , तn (सयमेव आयारगोयर विणयवेणइय चरणकरण जायामाया वत्तिय धम्ममाइक्खि) २।५ पोते ८ भने આચાર (જ્ઞાનાદિ પાંચ આચાર) અને ગોચર (ભિક્ષાચર્યા) તથા વિનયવાળા અને વિનય થી પ્રાપ્ત થતાં ફળવાળાં ચરણ-ત્રતાદિ (ચરણસિત્તરી,) અને ४२९५ (पिंडविशुद्धि), बोरे ४२२ (सित्तरी) मने यात्रा ( सयम यात्र)मने भात्रा (२माहिनी मात्रा) u भने। पहेश मापी (तएण समणेभगव महावीरे) त्यारे श्रमाण मावान महावी२ (खंदयं कच्चायणस्म गोत्तंसयमेव पव्वावेइ जाव धम्ममाइक्खइ) त्यायन गोत्री २४४४ने पाताने थे જ દીક્ષા આપી અને (સ્કંદકે ઉપરોક્ત જેવી, ઈચ્છા દર્શાવી હતી તે પ્રકારને )
पहेश माच्या. ते पशि भगवान महावीरे तेन समन्यु ( एवं देवाणुप्पिया! गंतव्वं ) 3 वानुप्रिय ! ! प्रमाणे यास न . ( एवं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨