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________________ भगवतीस्त्र मातं व्याला मातं मशकाः मातं वातिकपैत्तिकश्लैष्मिकसांनिपातिका विविधा रोगासंका परिषहोपसर्गाः स्पृशन्तु इति कृता एष मे निस्तारितः सन् परलोकस्य हिताय सुखाय क्षेमाय निःश्रेयसाय आनुगामिकतायै भविष्यति,तदिच्छामि खलु देवानुप्रिय स्वयमेव प्रवाजयितुम् स्वयमेव मुण्डयितुम् स्वयमेव सेधितुं स्वयमेव शिक्षयितुम् है। (माणं सीयं, माणं उण्हं, माणं खुहा, माणे पिवासा,माणं चोरा, माण वाला, माणं दंसा, माणं मसया, माणं वाइय पित्तियसें भिय सन्नियवाइय विविहारोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु) इसलिये इसे शीतजन्यबाधा उष्णजन्य बाधा क्षुधा जन्यबाधा, प्यास जन्यबाधा न हो चोर इसे दुःखित न करे व्याल-सर्प इसे कष्ट न पहँचावे दंशमशक इसे न काटे बात संबंधी, पित्तसंबंधी, श्लेष्म संबंधी सन्निपात संबंधी अनेक प्रकार के रोग और आतंक इसे पीडित न करे, तथा परीषह एवं उपसर्ग इस के पास तक न आवे (त्ति कटु) इस प्रकार विचार करके मैं (एस नित्थरिए समाणे) इसे यदि इन पूर्वोक्त विघ्नों से बचाकर जरामरणादि से जलते हुए इस संसाररूप गृह से निकाल लूं तो यह मुझे (परलोयस्स हियाए) परलोक में हितकारक (सुहाए) सुखकारक (खेमाए ) क्षेमकारक, (नीस्सेयसाए ) कल्याण कारक, तथा (अणुगामियत्ताए ) परम्परा के लिये भी कल्याणकारक (भविस्सइ) होगा (तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया) इसलिये हे देवानुपिय ! मैं चाहता हूं सीयं, माण उण्ह, माणं खुहो, माण पिवासा, माणं चोरा, मोण वाला, माण दंसा, माण मसया, माण वाइयपित्तियसेभिय-सन्निवाइय-विविहा रोगायका परीसहोवसग्गा फुसंतु) तथा तेने 31, २भी, भूम, त२स पोरे भुश्सीमा સહન કરવી ન પડે તે માટે ચેર તેને દુઃખ ન કરે તે માટે, વ્યાલ–સર્પ તેને કષ્ટ ન પહોંચાડે તે માટે, ડાંસ તથા મચ્છર તેને કરડે નહીં તે માટે, વાત, પિત્ત, કફ અને સન્નિપાતના રોગો અને અતંક તેને પડી શકે નહીં તે માટે, તથા પરીષહ અને ઉપસર્ગ તેની પાસે આવી પણ ન શકે તે માટે (त्ति कटु एस नित्थरिए समाणे) भा२भनमा सेवा विया२ मा०ये। छ है તેને પૂર્વોક્ત વિદનેમાંથી બચાવીને જન્મ, જરા અને મરણ રૂપી દુઃખના અગ્નિમાં બળતા સંસારરૂપી ઘરમાંથી બહાર કાઢી લઉં. તે તે મારે માટે ( परलोयस्स हियाए) ५२सोभा ति४।२४, ( सुहाए ) सुमा२४, (खेमाए ) म४।२४, ( निस्सेयसाए ) ह्याण ॥२४ निवडशे मन ( अणुगामित्ताए) ५२५२॥ ५ ४क्ष्या १२४ ( भविस्सइ) थरी (त इच्छामि णं देवाणुप्पिया! सयमेव पवावि) तहेवानुप्रिय ! मा५ पोते १ भन दीक्षा मापासवी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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