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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. २ उ० १ सू० १२ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५९५ ल्पितः प्रार्थितो मनोगतः संकल्पः' इत्यादीनां ग्रहणं कर्तव्यम् । यत्-'केण वा मरणेणं मरमाणे जीवे वडइ वा हायइ वा ' केन वा मरणेन म्रियमाणो जीवो वर्द्धते वा हीयते वा, कीदृशं हि मरणं जीवस्य संसारं वर्द्धयति कीदृशं च मरणं संसारं हासयतीति प्रश्नः ।' तस्स विय णं अयम?' तस्यापि च खलु अयमर्थः 'एवं खलु खंदया' एवं खलु स्कन्दक ! 'मए दुविहे मरणे पनत्ते' मया द्विविधं मरणं प्रज्ञप्तम् , ' तं जहा ' तद्यथा 'बालमरणे य पंडियमरणे य' बालमरणं च पण्डितमरणं च । मरणस्य बालपंडितभेदद्वयं श्रुत्वा किमिदं बाल मरणमिति बालमरणविषयकजिज्ञासावानाह-' से किं तं ' इत्यादि । ' से किं तं बालमरणे ' अथ किं तद् बालमरणम् ? हे भगवन् यदिदं देवानुप्रियेण बालपांडित्यभेदेन मरणस्य द्वैविद्धयं प्रदर्शितं तत्र किमिदं बालमरणं नामेति प्रश्नः " जीवे " जीव ' केण वा मरणेणं मरमाणे वडइ वा हायइ वा' किस मरण से मरकर बढता है और किस मरण से मरकर घटता है। तात्पर्य इसका यह है कि कैसा मरण जीव के संसार का वर्धक होता है और कैसा मरण जीव के संसार का हास करने वाला होता है । ' तस्त विय णं अयम?' सो इस प्रश्नका भी यह उत्तर है " एवं खलु खंदया ! मए दुविहे मरणे पण्णत्ते' कि हे स्कन्दक मैंने मरण दो प्रकार का कहा है । ' तंजहा' जो इस प्रकार से है-'बाल मरणे य पंडिय मरणे य' एक बाल मरण और दूसरा पंण्डित मरण । स्कन्दक ने जब मरण के ये दो प्रकार सुनें-तब उसे पालमरण का क्या स्वरूप है ऐसी जिज्ञासा हुई अतः उसने प्रभु से पूछा कि ' से किं तं बालमरणे' हे भगवान् ! आप देवानुप्रिय ने बालमरण और पंडित मरण के भेद से मरण दो प्रकार का कहा है-सो इनमें बालमरण क्या है ? इस प्रकार स्कन्दन की बालमरण की जिज्ञासा जानकर प्रभुने उसे कहा कि 'बाल ४८५ उत्पन्न थाले “ जोवे केण वा मरणेणं मरमाणे वड्ढइ वा हायइ वो" वा प्रारना भरणे भरवायी ७१ पोतान। ससा२ पधारे छ, भने वा २॥ भरणे भ२पाथी ७५ पोताना स सा२ घाउ छ? " तस्स वि यण अयम" तो तमात प्रश्न उत्त२ मा प्रमाणे छे. ' एवं खल खंदया! मए दुविहे मरणे पण्णत्ते” २४६४ ! में में प्रश्नां भ२९३ ४i छ. (त जहा) ते मे २ मा प्रमाणे छ.-"बलमरणे य पंडियमरणे य" (१) मातभरण सने (२) ५तिम२५ त्यारे २४न्हो मडावीर प्रसुने ५च्यु “से किं त बालमरणे ?" मापन् ? पासमतुं २१३५ j डाय छ १ मा प्रमाणे २४६नी जिज्ञासा तीन प्रभुतेने "बाल શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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