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भगवतीसूत्रे तदेव यावत् यौव ममांतिकं तव हव्वमागतः । तद् नूनं स्कंन्दक ! अयमर्थः समर्थः । हन्त अस्ति योपि च ते स्कन्दक ! अयमेतद्रूप आध्यात्मिकश्चिन्तितः मार्थितो कल्पितो मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत किं सान्तो लोकोऽनंतो लोकः ( इत्यादि ) तस्यापि चायमर्थः-एवं खलु मया स्कन्दक! चतुर्विधो लोकः प्रज्ञप्तः । तद्यथा-द्रव्यतः क्षेत्रतः कालतो भावतः । द्रव्यतः खलु एको लोकः सांतः१, क्षेत्रतः खलु लोकोऽसंख्याताः योजनकोटिकोटयआयामविष्कंभेण असंख्येया योजनकोटिकोटयः परिक्षेपेण प्रज्ञप्ताः, अस्ति पुनस्तस्यान्तः ॥२॥ कालतो शंकित आदि वृत्तिवाले बनकर तुम यहां मेरे पास आये हो । ( से णूणं खंदया ! अयमढे समढे) सो कहो स्कन्दक यह सत्य बात है न ? (हंता अस्थि ) तब स्कन्दक ने कहा हां सत्य बात है।
(जे वि य ते खंदया? अयमेयारूबे अज्झथिए, चिंतिए, पत्थिए, कप्पिए, मगोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था ) तथा-हे स्कन्दक ! जो तुझे यह इसरूप आध्यात्मिक, चिन्तित, प्रार्थित, कल्पित, भनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ है कि (किं स अन्ते लोए अणते लोए० तस्स विय गं अयमहे) लोक अन्तसहित है कि अन्त विना का है इत्यादि। सो इनका यह अर्थ है-(एवं खलु मए खंदया ! चउब्धिहे लोए पन्नत्ते) है स्कन्दक ! मैंने लोक चार प्रकार का प्रज्ञप्त किया है, (तंजहा ) वह इस प्रकार से है-(दव्यओ खेत्तओ काल ओ भावओ) द्रव्य की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल की अपेक्षा और भाव की अपेक्षा से । ( दव्वओ णं एगे लोए स अंते, खेत्तओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयण कोडाकोશંકા કાંક્ષા વગેરે ઉત્પન્ન થવાથી તમે તેના ઉત્તર જાણવા માટે મારી પાસે माया छ। . ( से गूणं खदया ! अयमटे समठ्ठ) २४४ ! ४ ते पात सायी छ ? (हता अस्थि) २४.४ ४१५ माया, "२५नी वात साथी छे. (जे वि य ते खदया ! अयमेयारूवे अज्झथिए, चिंतिए, पत्थिए, कम्पिए, मणोगए, संकप्पे समुप्पज्जित्था ) तथा २४४४ ! तभने २मा प्रसार माध्यामि यिन्तित, प्रार्थित, पित. मनोगत स४६५ उत्पन्न थयो छ, (किं स ते लोए अणते लोए० तस्स वि य णं अयम) सो अन्तसडित छ । मन्त २डित छ ? छत्याहि. तो ते प्रश्नोन मा प्रमाणे पथ थाय छ-( एवं खलु मए खंदया ! चउबिहे लोए पन्नत्ते ) २४६ ! में या२ प्रश्न सोड वर्णव्या छ-(त जहा) ते यार ४॥२॥ २॥ प्रमाणे-दव्यओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ) (१) द्रव्यनी अपेक्षा, क्षेत्रनी अपेक्षा. (3) ४ी मपेक्षा मन (४) मावनी अपेक्षा. (दवओ णं एगे लोए स अंते, खेत्तओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयण कोडाकोडीओ आयामविक्खंभेण, असंखेज्जाओ जोयण
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨