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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ० १ सू० १२ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५६१ रिमे य अनिहारिमे य, नियमा अप्पडिकम्मे से तं पाओव. गमणमरणे। से किं तं भत्तपच्चक्खाणे ? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा--नीहारिमे य अनीहारिमे य नियमा सप्पडिक्कमे से तं भत्तपच्चक्खाणे । इच्चेत्तेणं खंदया दुवि. हेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइयभवग्गह
हिंअप्पाणं विसंजोएइ जाव वीइवयइ से तं पंडियमरणेण मरमाणे जीवे हायइ से तं पंडियमरणे। इच्चेएणं खदया दुविहेणं मरणेणं मरमाणे जीवे वड्डइ वा हायइ वा ॥सू०१२॥
छाया-तद् नूनं त्वं स्कन्दक ! श्रावस्त्यां नगर्यो पिंगलकेन निग्रंथेन वैशालिकश्रावकेण अयमाक्षेपः पृष्टः-मागध ! कि सांतो लोकोऽनन्तो कः । एवं
' से गूणं तुमं खंदया!' इत्यादि।
सूत्रार्थ-( से गूणं तुमं खंदया ! ) हे स्कन्दक! तुम (सावत्थीए नयरीए) श्रावस्ती नगरी में (नियंठेणं पिगलएणं ) निर्ग्रन्थ पिंगलक ने ( वेसालिप सावएणं ) जो कि वैशालिक-भगवान महावीर का-श्रावक है अर्थात् भगवान महावीर के उपदेशगान करने में रप्तिक है (इणं अक्खेव पुच्छिए ) इस प्रश्न को पूछा है-(मागहा) हे मगध-मगधदे. देशोद्भव हे स्कन्दक ! (किं स अंते लोए अणंते लोए) लोक क्या सान्त है अथवा अनन्त है इत्यादि ? ( एवं तं चेव जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वंमागए ) इस प्रकार पूछे जाने पर उसके प्रश्नो से ___ " से णूणं तुम खंदया ” त्यादि ।
सूत्रा--( से गूणं तुम खंदया ! ) 3 २४४४ ! (सावत्थीए नयरीए नियं ण पिंगलएणं वेसालियसावरणं) श्रावस्ती नारीमा वैशालि श्रावमापान महावीर पास-किस निन्थे तभने ( इणं अक्खेव पुच्छिए ) मा प्रमाणे प्रश्नो पूछया :-( मागहा) भाग ! " मगधदेश ५i साडे २४.४४!” (किं स अन्ते लोए अर्णते लोए ? ) al४ मत सहित छ है मन्त २डित छ ? त्यादि प्रश्नो तभो पूछया al. ( एवं त चेव जाव जेणेव ममं आतिए तेणेव हव्वमागए ) ते प्रश्नो सामान तमा। मनमा
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨