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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०१ सू० १२ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५६३ लोको न कदाचित् नासीत् न कदाचिन्नभवति, कदाचिन्न भविष्यति अभूत च भवति च भविष्यति च, ध्रुवो नियतः शाश्वतोऽक्षयोऽव्ययोऽवस्थितो नित्यः, नास्ति पुनस्तस्यान्तः ॥ ३ ॥ भावतो लोकः अनंता वर्णपर्यवाः, अनताः गंधपर्यवाः, डीओ आयाम विश्वं मे णं, असंखेज्जाओ जायणको डाकोडीओ परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ) द्रव्य को अपेक्षा से लोक एक है और वह अन्त सहित है । क्षेत्र की अपेक्षा से लंबाई चौडाई को लेकर वह लोक असं. ख्यात कोडाकोडी योजन तक लंबा चौडा है और परिक्षेप परिधि की अपेक्षा से वह क्षेत्र लोक असंख्यात कोडा कोडी योजन की परिधि वाला कहा गया है । (अत्थि घुग स अंते ) इस तरह से उसका अंत है । ( काल ओ लोए न कयाइ न आसी, न कयाइ न भवइ न भविस्सइ) तथा काल की अपेक्षा से वह भूतकाल में कभी नही था ऐसा नही वर्तमान में यह नहीं है ऐसा भी नहीं है और भविष्यकाल में वह कभी कोइ दिन नहीं होगा ऐसा भी नहीं है । ( भविंसु य भवइ य, भपिस्स इ ) किन्तु वह लोक भूतकाल में था, वर्तमान में वह है
और भविष्यत् काल में वह रहेगा । ( धुवे, णियर, सासए अक्खए, अव्वए अबढिए,णिच्चे, नत्थि पुण से अंते) इस तरह यह काल से लोक ध्रुव है, नियत है, शाश्वत है । अक्षय है, अव्यय है, नित्य है, इसलिये इसका अंत नहीं है । (भावआ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा, अणंता कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ) द्रव्यनी अपेक्षा सो मे छ भने તે અંત સહિત છે. ક્ષેત્રની દૃષ્ટિએ તે લોક લંબાઈ અને પહોળાઈની અપે– ક્ષાએ અસંખ્યાત કોડા કડી યોજન લાંબે પહાળે છે. અને પરિધિની અપે क्षा ते सध्यात ये 131131 परिधियाण . (अस्थि पुण स अंते ) भने वजी ते अन्त सहित छ. ( कालो णं लोए न कयाइ न आसी, न कयाइ न भविस्सइ) 0नी -मपेक्षा विया२ ४२वाम मा त भूतामा કઈ પણ એ સમય ન હતો કે જ્યારે તેનું અસ્તિત્વ ન હોય, વર્તમાન કાળમાં પણ કોઈ એ સમય જોવામાં આવતું નથી કે જ્યારે તેનું અસ્તિત્વ ન હોય, અને ભવિષ્યમાં પણ તેનું અસ્તિત્વ ન હોય એવે સમય આવશે नही. ( भविंसु य, भवइ य, भविस्सइ य ) ५२तु ते सोनु मस्ति भूत
भां तु. वतमानाणे छ भने भविष्यमा ५५ २ातुं छे. (धुवे, णियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवद्विए, णिच्चे, नत्थि पुण से अंते) २ रीते કાળની અપેક્ષાએ વિચારવામાં આવે તે લેક પ્રવ છે, નિયત છે, શાશ્વત છે, अक्षय छ, म०यय छ भने नित्य छे. तेथी ना मत नथी. (भावओ गं
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૨